पिछले दो साल में शहरों में हरियाली बढ़ी : फॉरेस्ट सर्वे
वैसें तो हर दो साल में फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया जंगल और शहरों में पेड़ो को लेकर नए आंकड़े जारी करती हैं. इसी से जुड़ी हुई खबर एनडीटीवी डॉट कॉम पर दिखी, जिसके मुताबिक देश में कुल जंगलों का क्षेत्रफल बढ़कर 7,08,273 वर्ग किलोमीटर हो गया है. जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.54 प्रतिशत है. जबकि शहरों में लगाए गए पेड़ जिन्हें तकनीकी भाषा में ट्री कवर कहा जाता है वह 93,815 वर्ग किलोमीटर है.
पिछली रिपोर्ट
जंगल और ट्री कवर को जोड़ने पर 8,02,088 वर्ग किलोमीटर पर हरियाली है. हर दो साल में फॉरेस्ट कवर को लेकर रिपोर्ट जारी की जाती है. पिछली रिपोर्ट 2015 में आई थी और उसके मुकाबले जंगल औऱ ट्री कवर की सम्मिलित हरियाली में 8021 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई थी. जबकि केवल जंगलों का ही एरिया कुल 6778 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है. ट्री कवर यानी शहरों में लगे पेड़ों का कवर 1243 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है.
इन राज्यों का सबसे ज्यादा योगदान
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक औऱ केरल ने जंगलों की बढ़ोतरी में सर्वाधिक योगदान किया है. 15 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जहां जंगल 33 प्रतिशत से अधिक है. अभी पूरे देश में जंगल और ट्री कवर कुल मिलाकर 24 प्रतिशत से अधिक हैं लेकिन सरकार कह रही है कि वह इस कवर को 33 प्रतिशत तक ले जाना चाहती है.
पहाड़ी इलाकों में फॉरेस्ट कवर
सरकार ने जो आंकड़े सोमवार को जारी किये हैं उनके हिसाब से पहाड़ी राज्यों का फॉरेस्ट कवर करीब 2 लाख 83 हज़ार वर्ग किलोमीटर है और यह देश के कुल क्षेत्रफल का 40 प्रतिशत से अधिक है. सरकार कह रही है कि पहाड़ी राज्यों में फॉरेस्ट कवर करीब 750 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है. यह महत्वपूर्ण है कि उत्तराखंड जैसे राज्य में केवल 0.04 प्रतिशत फॉरेस्ट कवर बढ़ा है और यहां घने जंगलों में कमी आई है यहां कुल जंगल 24 हज़ार वर्ग किलोमीटर से अधिक हैं.
जंगलों के हालात
हालांकि कई विशेषज्ञ सरकार के दावों से सहमत नहीं है और उनका मानना है कि जंगलों की हालत बहुत अच्छी नहीं है. उनके मुताबिक सरकार का सर्वे जंगलों की सेहत के सही हाल नहीं बताता है. इसके लिए पर्यावरणविद् ‘सैंपलिंग त्रुटिपूर्ण’ के तरीके को ज़िम्मेदार मानते हैं. पर्यावरण के जानकारों के मुताबिक सरकार काटे गए जंगलों की जगह कितने पेड़ लगाए गए इसके भी आंकड़े नहीं देती है. जिस कारण इस रिपोर्ट में पेश हुए आंकड़ो पर संदेह होता है. अंत में यही कि सरकार सही है या इसके खिलाफ तर्क देने वाले पर्यावरणविद् यह फैसला करना बहुत ही मुश्किल है. लेकिन देश की जनता के सामने इस गंभीर समस्या के ठीक आंकड़े आना बेहद जरूरी है.