ज़िन्दगी की एक सीख
ज़िन्दगी में बचपन से तरह-तरह के लोगों से मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू हो जाता हैं लेकिन उम्र के साथ-साथ सोच तो बदलती हैं और हमारी ज़िन्दगी में लोगों की एहमियत भी. बात उस वक़्त की है जब अपनी किशोर अवस्था से जवानी की ओर कदम रख ही रही थी यानि स्कूल से कॉलेज में एडमिशन लिया ही था.
सुना तो बहुत कुछ था कॉलेज लाइफ के बारे में लेकिन अंदर ही अंदर एक डर भी था कि ना जाने कैसे लोग होंगे? कैसे मैं सबसे घुल-मिल पाऊँगी?
यह सवाल मेरे जेहन में इसलिए था क्योंकि अपने माँ-बापू से दूर दिल्ली शहर में एडमिशन ले तो लिया था, लेकिन ज़िन्दगी में पहली बार उनसे दूर कहीं जा रही थी. आज शाम की रेलगाड़ी है सब सामान तैयार है, अपने दिल को यहाँ गाँव में छोड़ निकल जाउंगी. ट्रेन में बैठने से पहले अपने माता-पिता के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और अपने नए सफ़र की ओर रावना हो चली.
चाय-चाय की आवाज़ सुन आंखे खुली तो देखा अपनी मंजिल पर गाड़ी खड़ी थी. मैं तुरंत सामान उठाकर स्टेशन पर उतरी और कुली कर के बाहर आई. देखा तेज़ रफ़्तार से गाड़िया गुज़र रही थीं, आसमान साफ़ था पर रोड पर धुआ इतना था कि साँस ले पाना मुश्किल हो जाए. मैंने फटाफट ऑटो किया और जानकर के बताए हुए पते पर जा पहुंची.
मैंने चाबी पड़ोस वाले घर से लेकर किराए के अपने घर का दरवाज़ा खोला और सामान अंदर रख दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया. पर्दों को हटाकर रोशनी का स्वागत किया और झाड़ू उठकर सफाई का काम शुरू किया. 1 घंटे बाद थककर कर अपने बिस्तर पर लेटी और ठक-ठक की आवाज़ से आंख खुली तो देखा की रात हो चुकी थी और पड़ोस की एक औरत एक ढकी हुई थाल के साथ खड़ी थी. मैंने कहा अंदर आइए उन्होंने कहा न बेटी घर पर और भी काम है बस खाना देने आई थी. तुम यहाँ नयी हो कुछ मालूम नहीं होगा, इसलिए आज का खाना ले आई बाकि कल मार्किट चलेंगे जो भी सामान चाहिए हो ले लेना. मैंने उनका शुक्रिया अदा किया और दरवाज़ा बंद करके थाल को मेज़ पर रख दिया.
हाथ-मुँह धोकर मैंने खाने का पहला निवला खाया और आँखों से आंसू छलक उठे, माँ के हाथों का खाना याद आ गया. मैंने खाना खा कर बर्तन धोकर रख दिए और कपड़े निकाल अलमारी में रखकर सोने चली गई क्योंकि अगला दिन मेरी ज़िन्दगी में बहुत बड़ा बदलाव लाने वाला था.
गाड़ी के हॉर्न से मेरी आंख खुली और देखा घड़ी में सुबह के 7 बज चुके थे, मैं बिस्तर से उठ फटा-फट तैयार होकर कॉलेज पहुंची. मेरा पहला दिन कॉलेज में कैसा गुज़रा यह एक ऐसी बात जो शायद ही कभी अपनी ज़िन्दगी में भुला पाऊँगी.
कॉलेज के गेट के अंदर जल्दी-जल्दी घुसी और जा भिड़ी एक शख्स से जो मुझे सॉरी बोल आगे निकल गया मैं 2 मिनट तक उसे ताकती रही और सोचा कैसा शहर है, 2 पल का चैन नहीं. फिर जल्दी से अपनी क्लास ढूंढ गेट पर पुहंची तो देखा वो शख्स मेरे प्रोफेसर हैं.
मैंने अंदर आने की परमिशन ली और अपनी सीट पर बैठ गई. तब तक क्लास में कोई नहीं आया था. सर में मुझसे माफ़ी मांगते हुए कहा कि जल्दी में था इसलिए कुछ कह नहीं पाया लेकिन तुम दिल्ली की नहीं लगती इसलिए एक सलाह देता हूँ- अपनी मिटटी को कभी भूलना मत क्योंकि यही तुम्हरी पहचान का कारण बनेगी, तुम्हारी सादगी और मन की सच्चाई.
मैं मुस्कुराई और इस बात को गांठ बाँध ली, और अपने हर कठीन वक़्त पर इस बात को याद रख ज़िन्दगी की हर परीक्षा को पास कर अपनी सपनों की मंजिल पर खड़ी हूँ. आज एक कॉलेज में मैं खुद एक टीचर के रूप में सैंकड़ो बच्चों को पढ़ाती हूँ और सभी को इस बात से रूबरू कराती हूँ कि ‘तुम्हरी पहचान तुम्हरी सादगी और मन की सच्चाई से हैं’ इस ज्ञान को जिंदगी भर अपने साथ रखना और जीवन के हर परीक्षा को मुस्कुराते हुए पार कर लोगे.