1944 में इस शख्स ने “महात्मा” नाम से संबोधित किया था गाँधी जी को
30 जनवरी हमारे राष्ट्रपिता यानि कि महात्मा गाँधी की पुण्य तिथि है. इसी दिन गाँधी हमें छोड़ कर चले गए थें. गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में एक हिंदू-गुजराती मोध बनिया वैश्य परिवार में हुआ. गाँधी जी के माता-पिता ने उनका नाम मोहनदास करमचंद गांधी रखा. गांधी जी के जन्म के 5 साल के बाद उनके पिता ने पूरे परिवार के साथ पोरबंदर से राजकोट जाने का फैसला किया. करीब 9 साल की उम्र में गांधी ने राजकोट में अपने घर के ही पास के स्कुल में जाकर अपनी पढ़ाई की शुरुआत की.
गांधी पढ़ाई के मामले में एक औसत छात्र थें. वो एक शर्मिले और बहुत ही कम बोलने वाले छात्र थें. वो खेलकुद में बहुत ही कम ध्यान देते थें. वो अपना ज्यादा वक्त किताबों के साथ ही बिताते थें. महज 13 साल के उम्र में ही उनकी शादी कस्तूरबा माखनजी कपाडिया (कस्तूरबा गांधी) से हो गई. गांधी जी की शादी के करीब दो साल बाद 1885 में उनके पिती करमचंद गांधी की मौत हो गई. कस्तुरबा गांधी महात्मा गांधी से एक साल बड़ी थी. जब गांधी 16 साल के हुए और कस्तुरबा 17 की तब उनका पहला बच्चा हुआ लेकिन जन्म के कुछ ही समय बाद बच्चे की मौत हो गई. इस बात से गांधी जी काफी दु:खी रहने लगें. हालांकि इसके बाद दोनों के 4 बेटे हुए. उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे का नाम था हीरालाल जिनका जन्म 1888 को हुआ था. उनके दूसरे बेटे का नाम मनीलाल था जिनका जन्म 1892 को हुआ, तीसरे बेटे रामदास का जन्म 1897 को हुआ जबकि चौथे बेटे देवदास का जन्म 1900 में हुआ.
महात्मा गांधी ने नवंबर 1887 में(18 साल की उम्र में) इलाहाबाद से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद 1888 में उन्होंने भावनगर के रामदास कॉलेज दाखिला लिया. उन्होंने यहां हायर एजुकेशन के लिए दाखिला लिया लेकिन आर्थिक स्थिति ख़राब होने के कारण वो यहाँ का फीस अफ्फोर्ड नहीं कर सकें और उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. गाँधी जी के कॉलेज छोड़ने के बाद उनके पारिवारिक मित्र मावजी दवे जोशीजी ने उन्हें और उनके परिवार को सलाह दी कि उन्हें लंदन जाकर लॉ (वकालत) की पढ़ाई करनी चाहिए. लेकिन इसी साल उनके बेटे हीरालाल का जन्म हुआ था इसीलिए उनकी मा ने उन्हें अपने परिवार को छोड़कर दूर ना जाने की सलाह दी. लेकिन गाँधी चाहते थें कि विदेश जा कर अपनी लॉ की पढ़ाई को ख़त्म करें. इसीलिए उन्होंने किसी तरह से अपनी माँ को इस बात के लिए राजी किया. उन्होंने अपनी माँ से वादा किया कि वो विदेश जा कर मीट, शराब और औरतों से दूर रहेंगे. गांधी के भाई लक्ष्मीदास, जो कि खुद भी पेशे से वकील थे उन्होंने गांधी का साथ दिया जिसके बाद उनकी मां पुतलीबाई उन्हें भेजने के लिए राजी हो गईं.
गाँधी जब लंदन में थे तो उसी दौरान उनकी मां का देहांत हो गया लेकिन उनके परिवार वालों ने इस बात की जानकारी उन्हें नहीं दी ताकि उनका ध्यान पढ़ाई में लगे रहे. महात्मा गाँधी ने देश को अहिंसा के राह पर चलते हुए आजादी दिलाई. साथ ही देशवासियों को यह संदेश भी दिया कि अहिंसा सर्वोपरि है. आज केवल पूरा देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व गाँधी को महात्मा गाँधी के नाम से बुलाता है. लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि गाँधी को ये नाम किसने दिया था. 6 जुलाई 1944 को सुभाष चंद्र बोस ने रेडियो रंगून से ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था. गाँधी जी के मौत के बाद जब उनकी शवयात्रा निकली तो यह यात्रा करीब 8 किलोमीटर लम्बी थी. ऐसा कहा जाता है कि उनकी शव यात्रा में करीब 10 लाख लोग चल रहे थें और लगभग 15 लाख लोग रास्ते में खड़े थें. हमारे देश में करीब 53 ऐसी बड़ी सड़कें हैं जिनका नाम महात्मा गाँधी के नाम पर रखा गया है. जब कि हिन्दुस्तान से बाहर विदेशों में कुल 48 सडकों का नाम महात्मा गाँधी के नाम पर रखा गया है. गांधी ने साउथ अफ्रीका के डर्बन, प्रिटोरिया और जोहांसबर्ग में कुल तीन फुटबॉल क्लब स्थापित करने में मदद की थी.