क्या सच में होता है इलेक्ट्रोनिक सामान से कैंसर ?
वैसें तो यह तर्क वितर्क का अच्छा खासा विषय है क्योंकि बढ़ती तकनीक काफी तरह से लाभदायक है तो वहीं काफी पहलूओं से इसका कुछ न कुछ नुकसान भी है. ऐसा इसलिए है क्योंकि हाल फिलहाल में आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में तो स्थति टेंशन वाली ही है. यह रिपोर्ट है ‘वैश्विक ई-कचरा निगरानी 2017’ की, जिसमें बताया गया है कि अगर अगले आने वाले कुछ सालों में इसपर ध्यान नही दिया गया तो भारत के करोड़ों लोगों के स्वास्थ और पर्यावरण पर इसका ज्यादा दुष्प्रभाव देखने को मिलने वाला है.
रिपोर्ट से कहा गया है कि ई-कचरा के मैनेजमेंट में कम पढ़े-लिखे लोगों की संख्या करोड़ों में है. इसमें पांच लाख से अधिक नाबालिग यानी बच्चे भी शामिल हैं. ऐसे बच्चों की सेहत इससे बुरी तरह प्रभावित हो रही है. इसका जो कारण रिपोर्ट में बताया गया है वह है इलेक्ट्रॉनिक उद्योग का भारत में सबसे तेज़ी से उभरता हुआ उद्योग होना, जिसके चलते ई-कचरा में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. परंतु परेशानी सिर्फ यहां नही है चुनौती है ई-कचरे को रिसाईकल करने की, क्योंकि इस उद्योग में कम पढ़े लिखे लोगों की तादाद ज्यादा है.
वहीं वर्ष 2016 में बीस लाख टन ई-कचरा तैयार हुआ था, जिसे रिसाईकल न होने के कारण इसकी मात्रा बढ़ती जा रही है. जिसका सीधा असर सेहत पर पड़ रहा है. गौरतलब है कि ‘वैश्विक ई-कचरा निगरानी 2017’ की यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ और अंतरराष्ट्रीय ठोस कचरा संगठन द्वारा मिलकर तैयार की गई है. जिसकी प्रमाणिकता पर संदेह नहीं किया जा सकता है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दक्षिणपूर्व एशिया में भारत अधिक आबादी के कारण ई-कचरा के घरेलू उत्पादन में बड़ी हिस्सेदारी निभा रहा है. भारत न केवल ई-कचरा का जखीरा बनता जा रहा है बल्कि वह विकसित देशों से ई-कचरा आयात करने वाले देशों में शीर्ष पर है. उद्योग एवं वाणिज्य संगठन एसोचैम तथा शोध एवं सलाह देने वाली कंपनी फ्रास्ट एंड सुलिवान द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक ई-कचरा स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए खतरनाक चुनौती बनकर उभरा है. अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो 2018 के अंत तक ई-कचरा का उत्सर्जन मौजूदा 18.5 लाख टन प्रतिवर्ष से बढ़कर 30 लाख टन प्रतिवर्ष हो जाएगा.
ई-कचरा उत्सर्जन में देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई शीर्ष पर है और यहां प्रतिवर्ष 1.20 लाख टन ई-कचरा उत्सर्जित होता है. इसी तरह एनसीआर दिल्ली में 98 हजार टन, बेंगलुरु में 92 हजार टन, चेन्नई में 67 हजार टन, कोलकाता में 55 हजार टन, अहमदाबाद में 36 हजार टन, हैदराबाद में 32 हजार टन और पुणे में 26 हजार टन ई-कचरा उत्सर्जित होता है. बहरहाल ई-कचरा क्या है इसे समझना आवश्यक है.
जब हम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को दीर्घकाल तक उपयोग करने के बाद उसको बदलकर नए उपकरण को इस्तेमाल में लाते हैं तो पुराना उपकरण अनुपयोगी हो जाता है, जिसे ई-कचरा कहा जाता है. विश्व में तकरीबन हर वर्ष 200 से 500 लाख मिट्रिक टन ई-कचरा पैदा होता है. इसमें एक हजार से अधिक जहरीले तत्व होते हैं जो पर्यावरण में घुलकर मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं. इस कचरे में सीसा, पारा और कैडमियम जैसे घातक तत्व होते हैं. ई-कचरे का निस्तारण सावधानीपूर्वक होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. इसलिए कि इसमें प्लास्टिक से लेकर कई तरह की धातुएं शामिल होती हैं. इन धातुओं को निकालने के लिए ई-कचरे को आग के हवाले कर दिया जाता है जो हवा, मिट्टी और भूमिगत जल में मिलकर जहर का काम करता है. ई-कचरे को जलाने से कार्सेनोजोन्स-डाई बेंजो पैरा डायोक्सिन एवं न्यूरोटॉक्सिन्स जैसी विषैली गैसें उत्पन्न होती हैं, जिससे मानव शरीर में प्रजनन क्षमता, शारीरिक विकास एवं प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है. इसे जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड तथा क्लोरा-फ्लोरो कार्बन भी उत्सर्जित होती है.
ई-कचरा इंसान के लिए धातक क्यों है ? इससे मनुष्य में हार्मोनल असंतुलन तथा कैंसर जैसी भयावह बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है. विडंबना यह भी कि ई-कचरे के जलाए जाने के बाद उसके अवशेष की पिसाई कर उससे निकली राख को, जिसमें विभिन्न प्रकार की विषैली धातुएं होती हैं, को नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है. यह नदी के जल के साथ मिलकर न केवल उसे जहरीला बनाती है, बल्कि उसके अवशेषों से नदी उथली भी हो जाती है. ई-कचरा की अधिकता वाले क्षेत्रों के पर्यावरण में जिंक, कॉपर, आयरन, एल्युमीनियम, क्रोमियम, निकिल व शीशे की मात्रा आवश्यकता से अधिक पाई जाती है और यह हवा में घुलकर पर्यावरण को प्रदूषित करती है. साथ ही गंभीर बीमारियों को भी जन्म देती है. उदाहरण के लिए कैडमियम से फेफड़े प्रभावित होते हैं जबकि कैडमियम के धुंए तथा धूल के कारण फेफड़े तथा किडनी दोनों को भयंकर नुकसान पहुंचता है.
क्या सच में कैंसर के कारक हो सकते है इलेक्ट्रोनिक एप्लायंस ? यह सवाल बहुत ही महत्तवपूर्ण है क्योंकि कचरे को पर्यावरण में फेंकने से विभिन्न तरह के खतरनाक रेडिएशन निकलते हैं, जिससे कई तरह की गंभीर बीमारियां पैदा होने का खतरा बना रहता हैं. इलेक्ट्रॉनिक कचरों में मुख्यत: कंप्यूटर मॉनिटर, मदरबोर्ड, कैथोड-रे टयूब्स, प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, मोबाइल फोन एवं चार्जर, काम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन एवं एलसीडी, प्लाज्मा टीवी, एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर इत्यादि शामिल है. इनमें कंप्यूटर की भागीदारी 70 प्रतिशत, दूरसंचार उपकरण 12 प्रतिशत, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण 8 प्रतिशत, चिकित्सा उपकरण 7 प्रतिशत तथा घरेलू उपकरण 4 प्रतिशत है. एक कंप्यूटर में प्राय: 3.8 पाउंड सीसा, फास्फोरस, कैडमियम तथा मरकरी जैसे घातक तत्व होते हैं जो जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं और कैंसर जैसी घातक बीमारियों को जन्म देते हैं.
चूंकि टेलीविजन और पुराने कंप्यूटर मॉनिटर में लगी कैथोड रे ट्यूब को रिसाइकिल करना मुश्किल होता है. ऐसे में उसमें शामिल घातक तत्व हवा में मिलकर स्वास्थ्य के लिए चुनौती बनते हैं. भारत में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रमुख हब बेंगलुरु है जहां हर वर्ष हजारों टन ई-कचरा निकलता है और यहां का पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. भारत ई-कचरा का डंपिंग ग्राउंड भी बनता जा रहा है. इस पर रोक लगाने की जरूरत है.