विकास की भूख या भुखमरी….क्या है भारत की हकीकत ?
Posted On October 14, 2016
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वाशिंगटन स्थित इन्टरनेशनल फ़ूड पालिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट [ IFPRI ] जारी ग्लोबल हंगर इन्ड़ेस्क 2016 के तहत 118 देशों की सूची मे भारत का स्थान 97 है. अपने लोगों का पेट भरने के मामले मे हम नेपाल , बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों से भी पीछे हैं , पिछले कुछ वर्षों मे भुखमरी गरीबी और कुपोषण के आंकड़ों में कुछ हद तक सुधार हुआ है, लेकिन IFPRI के मुताबिक़ भारत के 15.2 प्रतिशत लोग आधा पेट खा कर ही गुजारा करते हैं, जबकि 5 वर्ष से कम आयु के 38.7 प्रतिशत बच्चे कमजोर हैं . सरकार गरीबी रेखा को मापने के लिए तरह तरह की कोशिशें करती रहती है, जिसका मकसद सम्स्याओंकी भयावहता को कम करके दिखाना होता है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां सच्चाई को उजागर कर ही देती हैं .

गरीबी , अशिक्षा और बीमारियों की स्याह हकीक़त से हम यह कह कर मुंह नही मोड़ सकते कि, विदेशी एजेंसियों को वास्तविक हालात का पता नही है . भुखमरी कुपोषण अविकास आज भी भारत की एक कडवी सच्चाई है, जिसे स्वीकार करने और युद्ध स्तर पर इसका सामना करने की जरुरत है. पूरी जनसँख्या के लिए भरपेट भोजन समुचित स्वास्थ्य शिक्षा और गरिमापूर्ण जीवन की व्यवस्था किये बगैर हम विश्व की वास्तविक ताकत नही बन सकते . आज तमाम नीतियां समाज के एक छोटे से वर्ग के हित मे ही बन रही हैं .यह वर्ग लगातार आगे बढ़ रहा है, जबकि कमजोर लोग वही के वहीँ पड़ें हैं , देश दो भागों मे बंट गया है. सत्ताधारी तबके समृद्ध वर्ग की चमक दमक दिखाकर भारतीय विकास की कहानी प्रचारित कर रहें हैं, लेकिन इससे परे भुखमरी और अविकास का अँधेरा छाया हुआ है . देश के उस हिस्से का कोई नाम लेने वाला भी नही है. सरकार ने निर्धनता उन्मूलन के लिए जो योजनायें चलाई हैं उनका मकसद गरीबों को किसी तरह जीवित रखना है , उनकी रोजी रोजगार के लिए स्थायी संसाधन विकसित करना नही ,लेकिन इन योजनाओं के बजट में भी कटौती हो रही है जबकि जरुरत इन्हें भ्रष्टाचार मुक्त करना था . सार्वजानिक वितरण प्रणाली [ PDS ] में लगभग 2 करोड़ फर्जी कार्ड बने हुए है, जिसके द्वारा गरीबों के लिए बांटा जाने वाला अनाज कही और ही पहुँच रहा है . मनेरगा में अनिमिताये जारी हैं गरीबों का हक बहुत ही हक के साथ छीना जा रहा है . सरकार अपना सीना और पीठ खुद ही थपथपा कर खुश हो रही है .


