भारत के सरकारी स्कूल, देखेंगे तो चौंक जायेंगे आप……..
देश मे स्कूली शिक्षा की मौजूद दशा कैसी है इसका साफ़ संकेत मानव संसाधन विकास मंत्रालय की उस रिपोर्ट से मिलता है जो इसी हफ्ते संसद मे पेश की गई है . इस रिपोर्ट के मुताबिक आज भी देश मे एक लाख से ज्यादा सरकारी स्कूल ऐसे है जो एक अकेले शिक्षक के दम पर चल रहें है . देश का कोई ऐसा राज्य नही है जहाँ एकलौते शिक्षक वाले ऐसे स्कूल न हो . यहाँ तक की राजधानी मे भी 13 स्कूल ऐसे है . सोचा जा सकता है कि इन प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों मे अकेला टीचर अलग अलग क्लास के बच्चों को आखिर कैसे और कितना पढ़ा पाता होगा . प्रसाशक और क्लर्क की जिम्मेदारियां निपटाने से लेकर मिड डे मील का बंदोबस्त करने तक , हर तरह का काम देखने का जो दायित्व इस एकलौते टीचर के सर पर आता है उन सबको निपटाते हुए वह बच्चों के पढ़ाने के अपने मूलभूत काम के लिए कितना वक़्त और एनर्जी बचा पाता होगा .
सबसे दयनीय स्थिति तो बिहार की है, एक बार टी.वी. पर बिहार के अध्यापकों का सर्वे दिखाया गया था, जहाँ पत्रकार के आसान से आसान सवाल का उत्तर देना भी बिहार के अध्यापकों के लिए बहुत मुश्किल साबित हो रहा था . कई अध्यापक तो कक्षा मे ही सोते हुए पाए गये . कई विद्यालय के प्राध्यापक तो ये भी बता पाने मे असमर्थ थे कि , उनका वर्तमान प्रधानमंत्री या राज्य का मुख्यमंत्री कौन है .
इसी ज़मीनी हकीकत के बीच केंद्र की तमाम सरकारें शिक्षा के अधिकार [ आर टी ई ] पर जोर देती रही हैं . गौरतलब है कि , आर टी ई गाइड लाइंस मे साफ़ तौर पर कहा गया है कि सरकारी और प्राईवेट स्कूलों मे हर 30 – 35 बच्चों पर एक टीचर होना चाहिए . हलाकि सरकारी आंकड़ो के मुताबिक देश मे छात्र शिक्षक के अनुपात का औसत पिछले एक दशक के दौरान काफी सुधरा है . 2005 – 2006 मे छात्र – शिक्षक अनुपात प्राइमरी और अपार प्राइमरी मे क्रमशः 46;1 और 34;1 था जो 2013 – 2014 मे क्रमशः 28;1 और 30;1 हो गया था . लेकिन अहम् सवाल यह है कि जब देश के करीब 13 लाख सरकारी स्कूलों मे से 1 लाख स्कूल इस तरह के एकलौते टीचर के भरोसे चल रहे हो तो छात्र – शिक्षक अनुपात के राष्ट्रीय औसत को भला कितनी अहमियत दी जा सकती है .
इस तरह की कई चुनौतियाँ हैं जो सरकारी दस्तावेजों मे भले ही छिप जाती हो , पर व्यवहार मे बच्चों तक शिक्षा पहुचाने की राह का रोड़ा बनी हुई है , जरुरत इस बात की है की सरकार स्कूली शिक्षा की समस्याओं को टुकडो मे देखने की आदत को छोड़े और समग्रता मे ऐसी नीति तैयार करे जो बच्चों को स्तरीय शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित कर सके .