कब सुधरेंगे हालात ?
निर्भया पर हिन्दुस्तान की जनता एकजुट हो गई थी , निर्भया कोई नाम नही था , कोई वजूद नही था महज़ एक एहसास है जो आज हर स्त्री महसूस करना चाहती है , आज हर स्त्री निर्भय होकर जीना चाहती है , अपनी मर्जी से सांस लेना चाहती है . लेकिन होता यह है कि, पहले माता – पिता फिर पति और फिर बच्चों की कैद मे ही ज़िन्दगी गुजार देती है . एक ऐसी कैद जहाँ सलाखें बेशक ना होती हो लेकिन बावजूद इसके उसकी कैद जारी रहती है , उसका गुनाह सिर्फ उसका विपरीत सेक्स , समाज , मान्यताएं उसे इस तरह कैद मे रहने को
मजबूर करते हैं .
दिसंबर 2012 के रेप काण्ड के बाद निर्भय होकर जीने की इच्छा ने इतना बड़ा आन्दोलन खड़ा किया कि, लोगों को भेड़ बकरी समझने वाले सत्तापक्ष और विपक्ष मे राजनेताओं की अक्ल ठिकाने आ गई और मजबूर होकर उन्हें सड़कों पर स्त्रीयों की सुरक्षा को लेकर बहुत सारे कानूनी और आर्थिक उपाय करने पड़े . लेकिन अफ़सोस की बात ये रही की 3 – 4 वर्षों मे ही ये सारे उपाय तो क्या ,महिलाओं के प्रति किसी भी प्रकार की जबाबदारी भी हवा हो गई .
अगर ऐसा ना होता तो हमें आज लगभग रोजाना ही ऐसी दिल दहला देने वाली स्त्री विरोधी ख़बरें सुनने को ना मिलती . यू.पी. मे तो सत्तारूढ़ पार्टी के शीर्ष नेता ही बलात्कार और छेड़खानी को लड़कों का मूलभूत अधिकार समझते है , शायद इसीलिए बुलंदशहर मे दिन ढलने के 2 घंटे बाद माँ बेटी के साथ गैंगरेप हो जाता है .
राजधानी दिल्ली को ही ले लें. यहाँ राजनेता , पुलिस , और अपराधियों के गिरोह लड़कियों के खिलाफ लामबंद से नज़र आ रहें हैं . कभी दिन दहाड़े बलात्कार की ख़बरें आती है , कभी अपहरण की. इस तरह की हैवानियत का शिकार ज्यादातर 6 से 12 की मासूम बच्चियां बनती हैं . कभी बलात्कार के बाद जलाने की कोशिश मे अधजली लाश , कभी शर्मिंदगी के चलते आत्महत्या . सुस्त कानून और लचर न्याय प्रक्रिया ने इन घटनाओं को रोकने के बजाय प्रोत्साहित ही किया है . जब भी कोई ऐसी घटना सामने आती है तब दिल्ली मे सत्तारूढ़ पार्टियाँ एक दुसरे के उपर प्रत्यारोपण मे लग जा
ती है . मूल घटना से तो जैसे उनका कोई लेना देना ही नही होता . मीडिया का सारा ध्यान पीड़ित पक्ष से हट कर नेताओं की बयान बाज़ी पर लग जाता है . पीडिता अपनी घुटन और शर्मिंदगी मे बेबस होकर जिंदा लाश के सामान जीने को मजबूर हो कर रह जाता है .छेड़खानी को तो किसी अपराध की श्रेणी मे ही नही रखा जाता , पुलिस के पास छेड़खानी की शिकायत लेकर जाओ तो समझा बुझा कर वापस भेज देती है .दिल्ली पुलिस ने राजधानी मे महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर एक रिपोर्ट जारी की है . इसमे 2012 से लेकर 2015 तक के आंकड़ों के आधार पर कहा गया है कि , दिल्ली मे रोजाना कम से कम 4 महिलाओं के साथ बलात्कार और 9 महिलाओं के साथ बदसलूकी या छेड़छाड़ होती है .
विगत 4 साल मे रेप के 706 केस दर्ज हुए थे 2015 मे इनकी संख्या 2199 पहुँच गई है .अगर पिछले 15 साल की तुलना करें तो इनमे 6 गुना इजाफा हुआ है .पुलिस के आंकड़ो के मुताबिक 2012 मे महिलाओं पर छेड़छाड़ के इरादे से हमले की 727 घटनाएं हुई थी , इनकी संख्या 2013 मे 3515 थी जो 2014 मे बढ़कर 4322 और 2015 मे 5367 पहुँच गई . घर की चारदीवारी मे भी महिलायें सुरक्षित नही है , 2012 से जुलाई 2016 तक दहेज़ हत्या के 681 केस सामने आये थे , ससुरालियों के खिलाफ 13984 केस दर्ज किये.