एक दुखद अतीत के अनछुए पहलू ….
कुछ समय पहले अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा जब जापान गए तो उन्होंने हिरोशिमा – नागासाकी पर हुए परमाणु बम के हमले से पीड़ितों को श्रधांजलि दी . इसप्रकार श्रधांजलि देने वाले वह पहले अमेरिकी राष्ट्रपति है . लोगों ने ये भी टिपण्णी की ‘’ जब श्रधांजलि दी तो माफ़ी भी क्यों नही मांगी ‘’ पर ये हमला स्वाभाविक था जिसमे लाखों लोगों की जाने चली गई . पीढ़ी दर पीढ़ी लोग विकलांग हो गये .
जब माफ़ी का जिक्र चला तो ऐसे मे ग्रुप कैप्टन लियोनार्ड चेशायर के बारे मे सबको जानना चाहिए . ग्रुप कैप्टन लियोनार्ड चेशायर ब्रिटिश सेना की फाइटर पायलट थे , इन्होने हिरोशिमा – नागासाकी पर बम गिराया था , लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने सेना से इस्तीफ़ा दे दिया था और मानसिक एवं शारीरिक तौर पर विकलांग लोगों के लिए काम करना आरम्भ किया . उन्होंने दुनिया भर मे घूम कर ऐसे पीड़ितों के लिए शेल्टर होम बनाए .वह दुनिया भर मे घुमते रहते और सभी शेल्टर होमो मे जाकर लोगों का हाल जानते कि उन्हें कोई तकलीफ या आवश्यकता तो नही है .वे इसी सिलसिले मे देहरादून भी आते थे .
कैप्टन चेशायर की आँखों मे विकलांगों के प्रति उमड़ा प्रेम और सहानुभूति उनके द्वारा मांगी गई माफ़ी से कहीं ज्यादा मायने रखती थी , उन्हें देख कर किसी को विश्वास करना मुश्किल था की ये वही सैन्य अधिकारी हैं जिन्होंने हिरोशिमा – नागासाकी पर बम गिराया था . वे कभी किसी को प्रेम भाव से सहलाते कभी अपने हाथ से खाना खिलाते और कभी – कभी उन लोगों के पास घंटो बैठे रहते .उन्हें देख कर लगता ये व्यक्ति इतना सामान्य कैसे हो सकता है . क्या ये हिरोशिमा – नागासाकी पर गिराए बम का प्राश्चित है ? क्या ये परिवर्तन ऐसा नही है जैसा कि, कलिंगा युद्ध विजय के बाद सम्राट अशोक मे हुआ था ..किसी ने उनसे पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया ‘’वो कर्म एक सैनिक का था , उस सैनिक ने वही किया जो युद्ध मे आदेश मिलने पर कोई अन्य सैनिक करता , हां ये सच है कि,उस हमले के बाद मै घर चला गया था . अपने एक मित्र जो कि, गंभीर रूप से बीमार था उसकी तीमारदारी मे काफी समय लगा दिया और उसकी देख भाल करते हुए मुझे लगा कि ऐसे बहुत से लोगों को मेरी जरुरत है ,और इसी सोच के साथ इस होम की शुरुआत हो गई .’’
जब उनसे पूछा देश मे इतने लोग गरीबी मे अपने जीवन का अर्थ खो रहें हैं , और यहाँ भी उन लोगों के लिए जो विकलांगता के कारण अपने जीवन का अर्थ खो बैठें हैं , केवल साँसों मे जीवित हैं उनको जीवित रखने के बजाय ‘’ दया मृत्यु ‘’ का विकल्प बेहतर नही है ? तो उनका जवाब था कि ‘’ जीवन लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है उस माँ को भी नही जो जन्म देती है ‘’ सब ईश्वर की संतान हैं ये हक़ सिर्फ ईश्वर को ही है , हमारा कर्म ईश्वर की दी हुई जिंदगी को बचाना , संभालना , और संवारना है .जिसके एक काम से करोड़ों निर्दोषों की जाने गई , आने वाली पीढियां अपाहिज हो गई , वो शख्स एक एक जिंदगी को बचाने का जज्बा रखता है .इसके सामने माफ़ी क्या मायने रखती है .