ग्लोबल वॉर्मिंग का बढ़ता खतरा; जाने कैसे
ग्लोबल वॉर्मिंग का अर्थ भूमंडलीय उस्मिकरण से है .पृथ्वी की निकटस्थ सतह वायु और महासागर के औसत तापमान में 20 वीं शताब्दी से हो रही बृद्धि और उसकी अनुमानित निरंतरता है जलवायु पैनल पर बैठे अन्तेर सरकार पैनल ने निष्कर्ष निकाला है की 20 वीं शताब्दी के मध्य से संसार के औसतनतापमान में जो बृद्धि हुई है उसका मुख्य कारण अन्थ्रोपोजेनिक [मनुष्य द्वारा निर्मित ] ग्रीन हाउस गैसों की अधिक मात्रा के कारण हुआ ग्रीन हाउस का असर है की ज्वालामुखी के साथ मिलकर सौर परिवेर्तन जैसी प्राकृतिक घटनाएं 1950 से पहले वाले औधोगिक काल तक गर्मी के प्रभाव दिखाई देते थे तथा 1950 के बाद इसके य्हंदा होने के अल्प प्रभाव दिखाई देते थे ‘
जैसा की नाम से ही साफ़ है की ग्लोबल वॉर्मिंग धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी है .हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से ऊष्मा प्राप्त करती है .ये किरणें वायुमंडल से गुजरती हुई धरती की सतह से टकराती हैं और फिर वहीँ से परावर्तित होकर पुन;लौट जाती हैं .
धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है ,जिसमे कुछ ग्रीन हाउस गैसें भी शामिल हैं .इनमे से अधिकांश धरती के उपर एक प्रकार से आवरण बना लेती हैं ,यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है .
गौरतलब है की मनुष्यों ,प्राणीयों और पौधों को जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है .वैज्ञानिकों का मानना है की ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ोत्तरी होने पर यह आवरण और भी सघन [मोटा ] होता जाता है ,इस तरह ये आवरण सूर्य की किरणों को रोकने लगता है और यहीं से ग्लोबल वॉर्मिंग के दुष्प्रभाव दिखाई देने लगते हैं .जलवायु प्रतिमान के प्रतिरूपण इशारा करते हैं की धरातल का औसत ग्लोबल तापमान 21 वीं शताब्दी के दौरान और बढ़ सकता है .ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के अलग अलग मापदंड इस्तेमाल किये जा रहे हैं और जलवायु संवेदनशीलता के भी अलग अलग पैमाने बनाए गए हैं ,हालाकिं अधिकतर अध्धयन 21 वीं तक की अवधि पर केन्द्रित है .
ग्लोबल वॉर्मिंग से समुद्र के जलस्तर में बृद्धि ,मौसम में गर्मी ,अवक्षेपण की मात्रा और रचना में महत्वपूर्ण बदलाव कृषि उपज में परिवर्तन ,व्यापार मार्गों में संशोधन ,ग्लेशियर की स्थिति में बदलाव ,प्राजतीय विलोपन ,बीमारियों में बृद्धि ,नई बीमारियों का जन्म .
ज्यादातर राष्ट्रीय सरकारों ने क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और इसकी तस्दीक भी कर दी है ,क्योटो प्रोटोकॉल का उद्देश्य ग्रीन हाउस गैसों का कम करना है पर सारे संसार में राजनीतिक बहस छिड़ी हुई है की कोई कदम उठाया जाना चाहिए की नही ,ताकि भविष्य में वॉर्मिंग को कम किया जा सके या उसके असर को टाला जा सके .
ग्रीन हाउस प्रभाव की खोज 1824 में जोजेफ फेरियेर द्वारा की गई थी तथा 1896 में पहली बार स्वेनेटी आरहेनेस द्वारा इसकी मात्रात्मक जांच की गई थी .
औद्योगिक क्रांति के बाद मानवीय गतिविधि में बृद्धि हुई है, जिसके कारण विकिरण शील बाह्य CO2 ,मीथेन, ओजो, CFC और S नाइत्रोस भी बहुत बढ़ गये. पिछले 650000 वर्षों के दौरान किसी भी समय से इन स्तरों को काफी अधिक माना जा रहा है. वैज्ञानिक प्रमाण से माना जाता है कि CO2 की इतनी ज्यादा मात्रा पिछली बार 20 करोड़ वर्ष पहले हुई थी, विशेषकर वनों की कटाई के कारण ऐसा होता है .ग्लोबल वॉर्मिंग के दुष्प्रभाव धीरे धीरे समस्त प्राणीयों पर दिखाई देते हैं आज के समय में पूरा विश्व इसके बारे मे चिन्तित है लेकिन बढ़ती जनसंख्या, वनों की कटाई, वनों में आग का लगना, ये सब ग्लोबल वॉर्मिंग की मुख्य वज़ह हैं .