डॉक्टरों का बदलता रूप
भारत में डॉक्टर विधान चन्द्र राय की समृति में एक जुलाई को प्रति वर्ष राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉक्टर को धरती का भगवान माना जाता है। मानवता की सेवा के कारण समाज में डॉक्टरों का विशेष आदर और सत्कार है। वर्तमान में डॉक्टरी ही एक ऐसा पेशा है, जिस पर लोग विश्वास करते हैं। इस विश्वास को बनाए रखने की जिम्मेदारी सभी डॉक्टरों पर है। डॉक्टर्स डे स्वयं डॉक्टरों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि यह उन्हें अपनी चिकित्सकीय प्रैक्टिस को पुनर्जीवित करने का अवसर देता है। मगर ऐसा देखा गया है कि इस पवित्र पेशे में भी ऐसे लोग घुस गए हैं जो समर्पण और त्याग के स्थान पर मरीज को लूटने में लग गए हैं। यही कारण है कि धरती का भगवान शैतान के रूप में दिखाई देने लगा है। आज आवश्यकता इस बात कि है कि,इस बदले हुए स्वरूप को जन कल्याण की दिशा में परिवर्तित कर चिकित्सीय पेशे के सम्मान की रक्षा कर खोये हुए गौरव को फिर बहाल कर जनता के विश्वास को जीता जाए।
भारत में आम आदमी छोटी−मोटी बीमारियां होने पर दवाखाना अथवा डॉक्टर के पास जाना पसंद नहीं करता है। सर्दी−जुकाम, खांसी−बुखार आदि मौसमी बीमारियों के दौरान घरेलू उपचार पर वह ज्यादा ध्यान देता है। जब मर्ज बढ़ जाता है और बीमारी बिगड़ जाती है, तब वह दवा खाने की शरण में आता है और डॉक्टर को भगवान मानकर अपने परिजन को स्वस्थ करने की याचना करता है। कमोबेश हमारे देश के आम आदमी की यही स्थिति है। छोटी−मोटी बीमारी में डॉक्टर मरीज को कोई जांच की सलाह नहीं देता अपितु पर्ची पर ही दवा लिख देता है। डॉक्टर मरीज को समझाता है कि दवा कैसे−कब और कितनी मात्रा में लेनी है। दवा की पर्ची लेकर मरीज बाहर आता है और फिर दवा घर लाकर डॉक्टर की कही बातों को याद करता है।
कुछ लोग तो भूल जाते हैं कि दवा कैसे लेनी है। फिर अंदाज से ही दवा लेनी शुरू कर देते हैं, जो मरीज के लिए बेहद हानिकारक होती है। इससे उसका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। कुछ डॉक्टरों की पर्ची समझ में आ जाती है तो कुछ की लिखावट समझ से परे होती है। बहुदा एंटीबायोटिक दवाएं लिखी जाती हैं जो खाना खाने के बाद लेने की सलाह दी जाती है। मगर मरीज कई बार बिना खाना खाये ये दवाएं ले लेते हैं। इसी तरह कुछ दवाएं भूखे पेट लेने की सलाह दी जाती है। कई बार पढ़े−लिखे लोग भी दवाओं को लेने में गलती कर बैठते हैं। ऐसी स्थिति में आम आदमी को चाहिये कि वे अच्छी तरह समझ कर ही इन दवाओं को ग्रहण करें, अन्यथा सेहत सुधरने के बजाय बिगड़ने की संभावना अधिक रहती है।
अब बात करते हैं जांचों की। यदि आपको कमर दर्द, घुटना दर्द, पथरी का दर्द, गैस, डायबिटीज और खांसी जैसी बीमारी है तो, निश्चित रूप से डॉक्टर आपको एक्सरे, सोनोग्राफी, खून और पेशाब की जांच की सलाह देगा। डॉक्टर चाहे सरकारी हो या निजी। सरकारी डॉक्टर जांचों के लिए कहेगा तो आपकी परेशानी बजाए कम होने के बढ़ जायेगी, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में जांचें कराना इतना आसान नहीं है। आपको भीड़ भरी लाइनों से गुजरना होगा। आपका नम्बर कब आयेगा यह बताने वाला कोई नहीं मिलेगा। या तो आप बिना जांच लौट जायेंगे अथवा निजी जांच केन्द्रों पर जाकर जांच करवायेंगे और अपनी जेब खाली करेंगे। दोनों ही स्थिति दुखदायी है, मगर इसका कोई समुचित समाधान संभव प्रतीत नहीं होता। बहुत से लोग सरकारी आपाधापी में नहीं पड़कर निजी चिकित्सालयों में जाते हैं, जहां आपको बैठने और इंतजार की आरामदायक सुविधा अवश्य मिलती है। मगर यहाँ आपकी जेब काटने का अच्छा अवसर डॉक्टरों को मिलता है। वे विभिन्न जांचों के नाम पर अपने अस्पताल में ही मरीज को इधर से उधर घुमाते हैं और अच्छी−खासी राशि वसूल कर पर्ची पर दवा लिख देते हैं। ये दवाएँ उसी अस्पताल के दवा स्टोर से आपको मिलेगी, बाहर आप खरीदना चाहो तो नहीं मिलेगी।
दवाखाना व जांचों का यह गोरखधंधा फलफूल रहा है। ईश्वर आपको स्वस्थ रखे। यह तो साधारण बीमारियों की चर्चा है। यदि डॉक्टर ने आपकी बीमारी को गम्भीर बता दिया तो यह आपके लिए बेहद कष्टदायक होगा। फिर डॉक्टर रूपी भगवान आपको कैसे और कब बीमारी से निजात दिलाकर स्वस्थ करेगा यह कोई नहीं जानता। दुखद है कि सरकारी डॉक्टर निजी प्रैक्टिस में व्यस्त रहते हैं और सुबह−शाम मोटी फीस लेकर मरीजों को देखते हैं। सरकारी कानून−कायदे यहाँ नहीं चलते हैं।