समाज में बदलाव की हवा
बड़े बुजुर्ग अक्सर बताया करते थे कि जब पहली बार रेडियों या टेलीविजन सेट आया था तो पूरे गांव के लोग उसे सुनने और देखने आए थे। यह भी बताया कि जब टीवी पर रविवार के दिन कोई फिल्म या कोई विशेष धारावाहिक प्रसारित होता था तो जिस घर में टीवी हुआ करता था वहां मज़मा लग जाया करता था। सिर्फ इतना ही नही रामायण या महाभारत जैसे प्रोग्राम के आने पर उस समय की बुजुर्ग पूजा की थाली और अगरबत्ती आदि लेकर टीवी के सामने बैठा करती थी। वही हम आज की पीढ़ी के लोग यह सोचते है कि क्या ऐसा सच में होता होगा ? अगर बात करें आज के परिपेक्ष में बात करें तो टेक्नोलॉजी बहुत आगे बढ़ चुकी है। आजकल हमारे हाथों में स्मार्टफोन या आधुनिक मोबाइल होने से लगता है कि दुनिया हमारे हाथों में है। हम विश्व की कोई भी जानकारी प्राप्त करने के लिए हमको सिर्फ फोन पर सर्च करके क्लिक करने की जरूरत पड़ती है।
गौर करने वाली बात है कि यह बदलाव कोई ज़माने या शताब्दी पुराने नही है। ऐसा पिछले कुछ 25 से 30 तीस वर्षों में देखा गया है कि हम यानि दुनिया के लोग तकनीक में बढ़ते दिन दुगने रात चौगने विकास होने के बाद लगातार बदलते जा रहे है। हमारे समाज और सोच में बहुत से बदलाव देखने को मिले है। अगर हम सनातन धर्म के पवित्र भगवान के उवाच गीता की माने तो यह बात सही है कि परिवर्तन ही स्थिर है, इसके अलावा कुछ और भी स्थिर नही है, विश्व रोज़ बदलता है। जिसके चलते समाज इन बदलावों का अनुभव करता हैं।
टेलीविजन शुरू होने के समय के युवा और अब के बुजुर्ग यही बात कहते है कि तब के समय में और अब के समय में बहुत ज्यादा बदलाव आ चुका है। हालांकि इसमें कुछ नई बात नही है, क्योंकि हर आयु वर्ग के लोग इन बातों को दोहराते है। जिसका निष्कर्ष यह निकलता है कि हर दस साल के भीतर दुनिया में बहुत से परिवर्तन आ जाते है और बीस वर्षों में तो पूरी एक पीढ़ी ही बदल जाती है। जिसके बाद लगता है कि समाज पूरी तरह बदल गया है। समाज से मतलब है कि पीढ़ी बदलने पर लोगों के विचारों में बदलाव आ जाते है। जिसके चलते अनेक मामले देखने को मिलते है। उदाहरण के लिए बात करें तो परिवारिक रिश्ते, पिता-पुत्र, बड़े-छोटे भाई-बहनों में फर्क होना इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। आज के समय में मानवीय मूल्यों की बातें युवाओं में देखने को नही मिलती है। आज के समय की युवा पीढ़ी का अपनी ही दृष्टिकोण और अपनी वैचारिक समझ है। जिसके चलते कई तरह के मतभेद परिवार में देखने को मिलते है।
वैसे तो हर पीढ़ी का अपना समय होता है। हर पीढ़ी अपनी पिछली पीढ़ी से आगे होती है। सभी पीढ़ियों में आने वाले परिवर्तनों का कारण दिनोंदिन बेहतर होती तकनीक है। नई खोजों और आविष्कारों से दुनिया में कई बदलाव आए हैं। इन बदलावों ने पूरी दुनिया को देखने और सोचने के प्रति लोगों का नजरिया ही बदल दिया है। युवा पीढ़ी के साथ अब बुजुर्ग लोग भी कदम से कदम मिला कर इस बदलाव का हिस्सा बनते जा रहे हैं। नई पीढ़ी तो पूरे जोश के साथ आ रहे बदलाव का स्वागत करती है और तकनीकसिद्ध होने से वह आसानी से और सबसे पहले इसका इस्तेमाल भी शुरू कर देते हैं। उनके पीछे-पीछे पुरानी पीढ़ी के लोग भी देर से ही सही, लेकिन इनका इस्तेमाल करने लगते हैं। दुनिया में रहना है तो हमें अपने अंदर भी लगातार बदलाव लाने ही पड़ते है। बुजुर्ग भी जैसे-तैसे करके सीख ही जाते हैं। हर वक्त अपने साथ कुछ नया ला रहा है और यह नई दुनिया को हर पल बदल रहा है। आने वाले समय में मशीन से सीखना और कृत्रिम बौद्धिकता कई परिवर्तन लेकर आने वाली हैं। जिसका मतलब है कि हमारी आज की दुनिया और आगे बदलने वाली है।
लेकिन कई बार कुछ श्रणों के भीतर दुनिया में कई बदलाव आ जाते हैं। दादी-नानी के किस्सों के समय से आज के समय में बहुत परिवर्तन आ गया है। चार्ल्स डार्विन का ‘विकास सिद्धांत’ पृथ्वी के निर्माण से आज के मनुष्य तक के सभी परिवर्तनों को बताता है। यह सिद्धांत बताता है कि पृथ्वी का निर्माण कैसे हुआ, उसके बाद कैसे एककोशीय एल्गी बनी और फिर कैसे आदिमानव से आज का सभ्य मानव बना। डार्विन का यह सिद्धांत परिवर्तन का सबसे बेहतरीन उदाहरण है। मानव सभ्यता के शुरुआती दिनों में इंसान के पास न पहनने को कपड़े थे, न रहने को अच्छे घर। लेकिन आज हर हफ्ते फैशन बदल रहा है। लोग ऊंची-ऊंची इमारतों में रह रहे हैं। यहां तक कि अब पानी पर और पानी के अंदर भी निर्माण हो रहे हैं।
पहले लोग पत्र के माध्यम से संदेश भेजते थे। फिर समय बदला और टेलीग्राम का आविष्कार हुआ। उसके बाद टेलीफोन और मोबाइल। अब फेसबुक और वाट्सऐप जैसी तकनीकों के कारण हम दुनिया भर में कहीं भी, कभी भी आसानी से बातें कर सकते हैं। मानव सभ्यता के इतिहास को देखा जाए तो शुरुआत से अब तक कई परिवर्तन आए हैं। इन बदलावों ने हमारे समाज का चेहरा ही बदल दिया है। इनसे जिंदगी आसान और बेहतर हुई है, लेकिन नैतिक मूल्यों और मानवीय गुणों का तेजी से पतन हुआ है। जिसको बचाने के नाम पर आज के समय में जरूरत से ज्यादा राजनीति होती है। जिसके कारण भी लोगों में असमंजस की स्थिति बनी रहती है और विचारों की ज़ग ज़ारी रहती है। उसमें पढ़े लिखे और अनपढ़ दोनों ही तरह के लोग शामिल होते है, जिसके लिए जरूरी है कि बच्चे का बचपन से ही ध्यान रखा जाए और उन्हें मानवीय मूल्यों की बाते शिक्षा में दी जाए, साथ ही उनके द्वारा की जाने वाली गतिविधियों पर नज़र भी रखी जानी चाहिए। साथ ही अपने बच्चों को समय देना भी महत्तवपूर्ण है।