मोदी सरकार के दो साल. क्या हुआ विकास ?
मोदी सरकार ने घोषणाएं तो बहुत की पर उनका कोई असर दिखाई नही दे रहा है . सुधारों की गति और गुणवत्ता पर सवाल उठने लगें हैं . पिछले समय मे हुई तीन घटनाओ ने यह पूर्ण रूप से जाहिर कर दिया है . मोदी सरकार अपने शेष कार्यकाल मे आर्थिक सुधारों की जो रूप रेखा तैयार कर रही है उसे लेकर निवेशक और विश्लेषक पहले से ही हैरानी जताने लगें हैं कि आर्थिक विकास और निवेश उनकी संभावनाओं के अनुरूप निहितार्थ होंगे .
मोदी सरकार के वरिष्ठ सदस्य कई बार स्पष्ट कर चुकें है कि उनका बड़े क्रांतिकारी सुधारों मे यकीन नही है . जब उनसे पूछा जाता है कि सरकार बड़े सुधारों को लेकर सुस्त है तो वरिष्ठ मंत्री पूरक प्रश्न दाग देते है कि,ऐसे सुधार कौन से हैं जिसे अंजाम देने की जरुरत है ?अगर हालिया संकेतों पर नज़र डालें तो इस साल के अंत मे भी मोदी जी का लक्ष्य पूरा नही हो पायेगा , जैसे कि आईडीबीआई बैंक मे सरकार की हिस्सेदारी . लोगों को याद होगा इस साल बजट मे कहा गया था कि ,सरकार आईडीबीआई बैंक मे अपनी 74 प्रतिशत हिस्सेदारी घटाकर 51 प्रतिशत से भी कम करेगी . यहाँ तक कि इस फैसले पर अमल की चर्चा हो रही है , फिर भी वित्त राज्यमंत्री ने संसद मे सवाल के जवाब मे यही कहा कि ,सरकार की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से कम नही होगी .तो फिर बजट मे आईडीबीआई बैंक मे रणनीतिक विनिवेश के जरिये हिस्सेदारी घटाकर 50 प्रतिशत से कम करने की बात क्यों जोड़ी गई ?
दुविधा बढाने के लिहाज़ से मानो ये काफी नही था और पेट्रोललियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने सोमवार को ये एलान कर दिया कि अगले 10 महीनों तक कैरोसिन और रसोई गैस की कीमतों मे थोड़ी थोड़ी बढ़ोत्तरी की जाएगी . ये स्वागत योग्य कदम है और इसे राजनीतिक रूप से स्वीकार्य बनाने के लिए सरकार की ओर से कीमतें बढ़ाने का दांव प्रशंसनीय व्यवहारिकता दर्शाता है . एक बार फिर मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार से सबक लिया , जिसने डीजल की कीमतों मे थोड़ी थोड़ी बढ़ोत्तरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया . जिससे डीजल की कीमत को बाज़ार कीमतों से जोड़ने मे मदद मिली . हलाकि फिर भी मोदी सरकार के रुख पर सवाल उठता है .
पाँच साल मे पहली बार सरकार ने हर महीने 25 पैसे प्रतिलीटर कैरोसिन पर बढ़ने की इज़ाज़त तेल कम्पनियों को दे दी . अब वह अगले 10 महीनों तक भारी सब्सिडी वाले कैरोसिन की कीमते बढ़ने को प्रतिबद्ध है , रसोई गैस की कीमतों मे भी अतीत मे अक्सर बढ़ोत्तरी नही हुई है , मगर अब लगता है कि सरकार इसमे भी मासिक बढ़ोत्तरी की सोच रही है . संक्षेप मे कहें तो मोदी सरकार केवल गरीबों को लक्षित करने के बजाय कैरोसिन और रसोई गैस पर सब्सिडी घटाने की योजना बना रही है . कुल मिलाकर मोदी सरकार के सुधार परिदृश मे रणनीतिक बदलाव नज़र आ रहा है , अगर वह बड़े क्रांतिकारी सुधारों से हिचक रही है तो इसलिए कि उसे राजनीतिक प्रतिरोधों का एहसास है .
निजी कारण के मसले पर भी वह अपने कहे को पूरा कर सकती है, क्योंकि आईडीबीआई के मामले मे अभी तक कोई अंतिम फैसला नही हुआ है . संक्षेप मे कहा जाए तो मोदी सरकार के तहत सुधारों की रफ़्तार कुछ सुस्त और संकोची हो सकती है , जिन पर सियासी हालात की छाप भी रहेगी . कुल मिलाकर सरकार को जो भी राजनीतिक अवसर मिलेगा तो वो सुधारों से नही हिचकेगी क्योंकि मोदी सरकार को भी अच्छी तरह मालूम है की बोलने का समय अब पूरा हो गया है और अब समय है कुछ कर दिखाने का …