भारत के पास है ब्रह्मास्त्र. मिनटों में होगा पाकिस्तान धराशायी….
Posted On November 23, 2024
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6 उरी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है . इसी बीच सिन्धु जल संधि के रद्द होने की संभावना को भी बल मिलने लगा है . भारत का कहना है कि 1060 में हुए सिन्धु जल संधि के कार्यान्वयन पर मतभेद है . एक ऐसा मतभेद जिसे इसे विश्व बैंक के तत्वाधान में एक अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण मे भेजा जा चुका है . इसी गुरूवार को भारत की तरफ से बयान आया कि, कोई भी संधि एकतरफा नही हो सकती . सिन्धु जल संधि दो देशो के बीच पानी के बंटवारे की वह व्यवस्था है जिस पर 19 सितम्बर 1960 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने करांची में हस्ताक्षर किये थे .
इसमें 6 नदियाँ व्यास ,रावी, सतलुज , सिन्धु , चिनाब और झेलम के पानी के वितरण और इस्तेमाल करने के अधिकार शामिल हैं . इस समझौते के लिए विश्व बैंक ने मध्यस्था की थी . इस समझौते पर इसलिए हस्ताक्षर किये गये क्योकि सिन्धु बेसिन की सभी नदियों के स्त्रोत भारत मे है. [ सिन्धु और सतलुज हालाकि चीन से निकलती हैं ] समझौते के तहत भारत को सिंचाई ,परिवहन , और बिजली उत्पादन के लिए इन नदियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई है . जबकि भारत को इन नदियों पर परियोजनाओं का निर्माण करने के लिए काफी बारीकी से शर्ते तय की गई हैं कि, भारत क्या कर सकता है और क्या नही कर सकता है .
पकिस्तान को डर था कि, भारत के साथ अगर युद्ध होता है तो वह पकिस्तान मे सूखे की आशंका पैदा कर सकता है . बाद मे दोनों देशो के बीच 3 युद्ध हुए लेकिन एक द्विपक्षीय तंत्र होने से सिन्धु जल संधि पर किसी विवाद की नौबत नही आई . इसके तहत दोनों देशो के अधिकारी आंकड़ों का आदान प्रदान करते हैं . इन नदियों का एक दूसरे के यहाँ जा कर निरीक्षण भी करते हैं तथा किसी भी छोटे मोटे विवाद को आपस मे सुलझा लेते हैं . पी एम मोदी के आवास पर आपातकालीन बैठक बुलाई गई . उसी बैठक मे पी एम मोदी ने पकिस्तान पर कडा रूख दिखाते हुए कहा कि, खून और पानी एक साथ नही बह सकते .
मोदी ने पाकिस्तान की और बहने वाली नदियों की फिर से समीक्षा करने को कहा है . सरकार अब बिजली परियोजनाए बनाने पर विचार करेगी . तुलबुल परियोजना को भी शुरू किया जा सकता है , पकिस्तान को ज्यादा पानी लेने से रोका भी जा सकता है . ख़बरों के मुताबिक सरकार संधि तोड़ने जैसा कदम तो नही उठाएगी लेकिन नदियों को जोड़ने सहित कुछ ऐसे विकल्पों पर विचार और चर्चा करेगी जिससे भारत के हितों को नुक्सान न पहुंचे और पकिस्तान को भी झटका लगे .