भानगढ़ का किला : एक अनसुलझा रहस्य– यहाँ रात में जाना है मना, क्योंकि रात में होता है किसी और का राज
अगर कभी आपने गूगल पर हौंटेड प्लेस इन इंडिया सर्च किया होगा तो गुगल ने आपको सर्च रिजल्ट में भानगढ़ किले का नाम जरुर दिखाया होगा. ऐसी मान्यता है कि इस किले में भूतों का वास है. कभी यह किला अलवर की शान हुआ करता था. लेकिन आज यहाँ सन्नाटा पसरा रहता है. इस किले को भारतीय पुरातत्व विभाग भी भूतों का डेरा मानता है. किले के बाहर लगे पुरातत्व विभाग के बोर्ड में साफ़-साफ़ लिखा है कि यहाँ सूर्यास्त के बाद प्रवेश वर्जित है. पुरात्तव विभाग ने हर संरक्षित क्षेत्र में अपने ऑफिस बनवाएं है लेकिन इस किले के संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग ने अपना ऑफिस भानगढ़ से दूर बनाया है.
भानगढ़ किले का निर्माण राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का राष्ट्रीय उद्ध्यान के एक छोर पर किया गया है. इसका निर्माण आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में करवाया था. बाद में भगवंत दास के छोटे बेटे माधो सिंह ने इसपर राज किया. माधो सिंह के तीन बेटे थें- सुजान सिंह, छत्र सिंह और तेज सिंह. आगे चल कर माधो सिंह का तीसरा बीटा छत्र सिंह भानगढ़ का शासक हुआ. छत्र सिंह के पुत्र अजब सिंह थे. उन्होंने अपने नाम पर अजबगढ़ बसाया. अजब सिंह के दो बेटे काबिल सिंह और जसवंत सिंह अजबगढ़ में रहे और तीसरे बेटे हरी सिंह भानगढ़ में. इतिहासकारों के मुताबिक हरी सिंह के बेटे औरंग़ज़ेब के समय में मुसलमान हो गये. हरी सिंह के बाद भानगढ़ के वारिस वही थें. जब भारत में मुगल कमज़ोर पड़ेंतब महाराजा सवाई जय सिंह जी ने हरी सिंह के बेटों को मारकर भानगढ़ पर अपना अधिकार जमा लिया.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस किले को भूतों का किला क्यों कहा जाता है. आखिर क्या वजह रही होगी कि एक किला जो कभी खूब फलता-फूलता रहा है और आज वहां केवल भूत-प्रेत के अलावा कुछ भी नहीं है. वैसे तो इस किले के पीछे कई कहानियाँ है लेकिन जो कहानी सबसे ज्यादा कही और सुनी जाती है वो कहानी है भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती की. कहा जाता है कि भानगढ़ कि राजकुमारी रत्नावती बेहद खुबसुरत थी. उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्य में थी और देश के कोने-कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्छुक थे. महज 18 साल की उम्र में ही उनके यौवन और उनके रूप में और निखार आ गया था.
18 साल की उम्र में ही कई राज्यो से उनके लिए विवाह के प्रस्ताव आने लगे थें. एक बार की बात है जब वो किले से बाहर अपनी सखियों के साथ बाजार के लिए निकली औरएक इत्र की दुकान पर पहुंची. वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी. उसी समय दुकान से कुछ ही दूरी सिंधु सेवड़ा नाम का व्यक्ति खड़ा होकर उसे बहुत ही गौर से देख रहा था.सेवड़ा भी उसी राज्य का रहने वाला था. वह काले जादू का बहुत बड़ा महारथी था. ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रेम करता था.
इसी कारण वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था. इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर राजकुमारी को वशीकरण करने के लिए एक इत्र के बोतल में जिसे वो पसंद कर रही थी. उसमें काला जादू कर दिया. उसे ऐसा करते हुए एक आदमी ने देख लिया जो दरबार का बेहद ही प्रिय और विश्वसनीय था. उसने तुरंत जा कर इस बात की सूचना राजकुमारी को दी. इसके बाद राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया और उसे पास के एक पत्थर पर पटक दिया. पत्थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्थर पर बिखर गया. इसके बाद से ही वो पत्थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंधु सेवड़ा के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक उस पत्थर के द्वारा कुचला गया.जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी.
मरने से पहले तांत्रिक ने रत्नावती को शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्दी ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्मांएं इस किले में भटकती रहेंगी. उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच युद्ध हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये. यहां तक की राजकुमारी रत्नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी. एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रूहें घुमती हैं.