बाल विवाह शादी नही शोषण है
भारत वर्ष में बाल विवाह की परम्परा सदियों पुरानी है . भारत वर्ष में अशिक्षा , दहेज़ , और महिलायों की असुरक्षा की हालत ने आज भी इस परम्परा को जीवित रखा है . हलाकि शहरों में बालविवाह नही देखे जाते लेकिन गांवों में आज भी बालविवाह होते हैं और उनके दुष्प्रभाव भी देखे जाते हैं . कम उम्र में माँ बन जाना , ज्यादा संतानों को जन्म देना जब लड़की का स्वयं पूरी तरह शारीरिक विकास नही हो पाया ऐसे में उसकी संताने कहाँ से स्वस्थ हो सकेंगी ? राजस्थान हरियाणा और बिहार अभी भी बालविवाह की गिरह से आजाद नही हो सके है . इन प्रदेशों में चार – पाँच साल की उम्र में बच्चों की शादी करा दी जाती है , और बिदाई [ जिसे ग्रामीण बोल चाल में गौना कहा जाता है ] बारह वर्ष की उम्र तक कर देते हैं .
इन प्रदेशों में लड़कियों की शिक्षा के बारे में लोग बात तक करने को तैयार नही होते . उनका मकसद सिर्फ लड़कियों की शादी और घर के काम काज तक ही सीमित होता है . बालविवाह से लड़कियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है , बालविवाह से पैदा हुई संताने भी मानसिक और शारीरिक स्तर पर कमजोर होती है , जब माँ –पिता का ही सम्पूर्ण विकास नही हो पाया तब ऐसे में उनसे पैदा हुई संतानों का क्या बौद्धिक और शारीरिक विकास होगा ? बालविवाह से लड़कियों और बच्चों की मृत्युदर में बढोत्तरी हो रही है , जहाँ शहरों में इनकी मृत्युदर में कमी आई है वहीँ गाँव में कोई असर देखने को नही मिला .
बालविवाह की स्थिति में लड़का और लड़की का स्वयं अपना कोई निर्णय नही होता , सबकुछ परिजनों द्वारा ही निर्धारित होता है . भारतवर्ष में बालविवाह की प्रथा को ख़त्म करने के लिए सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक ने आवाज़ उठाई , उनके बाद हर सरकार ने इस रुग्ण प्रथा को ख़त्म करने का भरपूर प्रयास किया , इतनी कोशिशों के बाद इसमे कमी तो आई है , परन्तु पूरी तरह से भारत इससे मुक्त नही हो पाया है .
ग्रामीण इलाकों में शिक्षा को भी ज्यादा महत्व नही दिया जाता , यदि लड़कियों को अधिक से अधिक शिक्षित किया जाये , उनको शिक्षित करके अपने पैरों पर खड़ा किया जाए , रोजगार के नये अवसर उपलब्ध कराये जाएँ . उनके परिजनों को बालविवाह से होने वाली हानियों और शिक्षा के लाभ के बारे में समझाया जाए तो निश्चित ही बालविवाह जैसी कुप्रथा को ख़त्म किया जा सकता है . लेकिन जहाँ शिक्षा नही वहां जानकारी नही , ऐसे में इस प्रथा से पूरी तरह निजात पाना नामुमकिन लगता है , आज भी सुदूर कुछ ग्रामीण इलाके ऐसे हैं जहाँ सरकार का कोई नियम कानून नही चलता , गाँव का मुखिया या ग्रामीण लोगों द्वारा चयनित पंचायत का निर्णय ही सर्वोपरि होता है , एक तरह से ऐसे इलाके पूरी तरह देश से कटे होते है , इनमे छतीसगढ़ का बस्तर का इलाका है जहा आदिवासी अपनी विभिन्न प्रथाओं को जिन्दा रखे हुए हैं .