बरसा पानी खुल गई पोल ….
खुलकर हुई एक बारिश ने ही सरकार के खोखले दावों और पेरिस बनते शहरों की सच्चाई खोल कर रख दी . वैसे लोग पानी के संरक्षण , फसलों की अच्छी पैदावार के लिए , बारिश का इंतज़ार करते हैं , बारिश हुई तो सब जगह हाहाकार मच गया , अभी तो सीजन की सिर्फ एक ही बारिश हुई है तो ये हाल है ,अगर चौमासा अपना रंग दिखा दे तो हो सकता है की ये चमक दमक वाले शहर ही गायब हो जाएँ .
बारिश ने उन शहरों की पोल खोल कर रख दी जिनपर लोग बहुत इतराते थे और इन शहरों की तुलना पेरिस या शंघाई से करते हैं . मुंबई के नागरिक तो हर साल ऐसी समस्या से जूझते रहते हैं, और वह इनके आदी हो चुकें हैं , लेकिन गुडगाँव , बेन्गेलुरु के लिए ये एक नया अनुभव था . गुडगाँव मे 18 से 24 घंटे के जाम ने सबके होश उडा दिए . सिर्फ 40 से 50 मिमी बारिश ने गुडगाँव का जो हल किया वो किसी ने भी सपने मे भी नही सोचा होगा ये कोई प्राकृतिक आपदा नही थी ये मानवीय आपदा थी . इसके लिए मानव स्वयं जिम्मेदार है .विकास और आधुनिकरण के नाम पर बड़ी बड़ी इमारतें , मॉल ,होटल ,हाउसिंग सोसाइटी तो बना ली लेकिन आगे पीछे का कुछ नही सोचा कि बारिश का क्या होगा ? सीवर का क्या होगा ? जहाँ इतनी बड़ी संख्या मे लोग रहेंगे . वो लोग किस तरह सर्वाइव् करेंगे . ये किसी भी सरकार या बिल्डर्स ने नही सोचा . जयपुर हाइवे पर 6 फीट पानी की नदी बह रही थी .
ट्रेफिक जाम मे फसने के कारण बच्चों और महिलाओं की बहुत बुरा हाल था . सड़कों पर जो पानी था वो बारिश का पानी नहीं था बल्कि सीवर नाले सब सड़कों पर बह रहे थे ,आज गुडगाँव हाईटेक शहरों में से एक है लेकिन इस शहर में पर्याप्त मात्रा मे पीने को पानी भी उपलब्ध नही है . उसपर से जनसंख्या के बोझ ने इस समस्या को कम करने की जगह बढ़ा दिया है .
बेंगलुरु में झील का पानी सड़कों पर बह रहा था लोग सड़कों पर मछलियाँ पकड़ रहे थे ,ये कैसा विकास है ? ये कैसी तरक्की है ? क्या इस स्थिति मे इसकी तुलना पेरिस या शंघाई से कर रहे हैं .बाहर के देशों मे जब कोई शहर बसाया जाता है तो सबसे पहले लोगों की मूलभूत आवश्यकता पर जोर दिया जाता है फिर डेवलपमेंट की बात की जाती है लेकिन भारत मे सिर्फ अपने फायदे के लिए उद्योगपति , बिल्डर्स सरकार लोगों के हित के विषय मे सोचते भी नही .
हर बारिश से पहले सरकार कहती है ‘’हमने पूरी तैयारी करली है ‘’पर जब बारिश होती है तो उनके झूठे दावों की पोल खुल जाती है .इसका नुकसान सिर्फ आम आदमी को ही उठाना पड़ता है .सरकारें तो एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर किनारे हो जातें हैं .