नैतिकता को अपनाने के लिए किसी धर्म या जाति की जरुरत नही है ….
Posted On October 13, 2016
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यूं तो सभी जीव ईश्वर के बनाए हुए हैं, लेकिन मनुष्य को सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि, मनुष्य सोच सकता है, समझ सकता है, और अपने विचार को संप्रेषित कर सकता है . धर्म का डर दिखा कर लोगों को नैतिक नही बना सकते बल्कि नैतिकता वह नैसर्गिक गुण है जिसकी उत्पत्ति इंसान में स्वयं ही होती है . धर्म और जाति तो ऐसी बेड़ियाँ हैं जो लोगों को भय दिखा कर प्रेम करना सिखाती हैं पर ऐसा हो नही पाता . जैसे एक शिक्षक अपने विद्यार्थी को जो चीज प्यार से सिखा सकता है वो डंडे के जोर पर नही सिखा सकता .
धर्म के ठेकेदार , मंदिर के पण्डे ,पुजारी , मौलवी आदि धर्म के नाम पर लोगों को गुमराह करके उनका आर्थिक और सामाजिक शोषण करते है , धर्म के नाम पर लोग अपनी खून पसीने की कमाई इन पाखण्डियो को दे देते हैं . उन पैसो का ये लोग किस तरह दुरपयोग करते हैं और अपने विलासिता के साधन जुटाने मे करते हैं . आस्था और धर्म के नाम पर जिस तरह से लोगों का शोषण हो रहा है और इंसानों के बीच की दूरी बढती जा रही है .
दुनिया मे मात्र दो ही चीज हैं जिसकी वज़ह से लोग काम करते हैं एक लोभ दूसरी भय . ईश्वर को तो लोग यूं हीं बीच मे ले आते हैं . हम ईश्वर की संताने नही बल्कि प्रकृति की संताने हैं , हमे प्रकृति का संरक्षण और प्रकृति की ही पूजा करनी चाहिए . आज पर्यावरण के कारण ही प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड रहा है . नैतिकता को अपनाने के लिए किसी प्रेरणा या सीख की आवश्यकता नही होती ये तो मात्र एक सहज प्रवृति है, जो नैसर्गिक रूप से प्रत्येक मनुष्य मे होती है, किसी मे कम किसी मे थोड़ी ज्यादा .