नया रिकार्ड बनाने जा रही है अरहर दाल
कुछ समय पहले अरहर की दाल गरीब तबके की दाल के रूप में जानी जाती थी . मुख्यत बिहार और यू.पी .में लोग इसे पसंद करते थे. दक्षिण प्रदेशों में इस दाल का इस्तेमाल साम्भर बनाने में किया जाता है . आज अरहर की दाल को अभिजात्य वर्ग भी पसंद करने लगा है, अगर ये अब भी गरीबों की दाल होती तो इसे इतना महत्व नही दिया जाता.
ये बात तो जगजाहिर है की, महंगाई की मार सबसे पहले गरीब आदमी पर ही पड़ती है . भारत देश जमाखोरों की वज़ह से परेशान है, ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी जी ने दक्षिण अफ्रीका जाकर दालों के आयात सम्बन्धी अनुबंध पर हस्ताक्षर कियें है, क्योंकि वहां दालों की पैदावार काफी होती है, और वहां की जमीन भी दालों की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है .
भारतवर्ष में हर समय किसी न किसी चीज का संकट पैदा हो जाता है. वास्तव में संकट होता नही है सिर्फ बनाया जाता है. पिछले वर्ष ग्वार की यही स्थिति थी, कभी चना, कभी जीरा कभी काली मिर्च, दरअसल ये सब जमाखोरी के कारण होता है…….
हो सकता है आने वाले समय में अरहर दाल 300 रूपये किलो बिके, या ये भी हो सकता है की, इसे 80 रूपये किलो में भी कोई लेने वाला न हो, कुछ भी नही कहा जा सकता. लेकिन इतना तय है की जब भी ऐसी कोई परिस्थिति आई है तो आम आदमी ही परेशान हुआ है क्योंकि अरहर दाल अब भी आम आदमी की ही दाल है .
लगभग 4 वर्ष पहले अरहर की दाल का ऐसा ही संकट पैदा करके अरहर के दाल की तरह एक अनाज होता है, उसे अरहर की दाल में मिलकर बेचा था और जमाखोरों ने और भारी मुनाफा कमाया था. बहुत मुमकिन है कि ये सब भी जमाखोरों द्वारा ही किया जा रहा हो, ताकि अरहर की दाल का संकट दिखा कर उसकी कीमत को 300 या 400 तक पहुंचा सकें .