नदियों को जोड़ने की परियोजना: क्या है जिससे सरकार है अनजान ?
पिछले साल दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में नदियों को जोड़ने के विषय में बात करने के लिए एक कार्यक्रम रखा गया था. इस कार्यक्रम के दौरान जब उमा भारती बोल रही थी तो उन्होंने कहा था कि देश में जल संकट के हालात सोचनीय है लिहाजा नदियों को जोड़ने की योजना जरूरी है. इस तरह से यह संकेत मिला कि केंद्र सरकार इस योजना को लागू करने का इरादा पहले ही बना चुकी है. हालांकि उस कार्यक्रम में लोगों को इस परियोजना से जुड़े अपने विचारों को रखने के लिए बुलाया गया था और लोगों ने अपनी बात रखी भी. पिछले साल जल संसाधन मंत्री रही उमा भारती ने तो बुंदेलखंड की दो नदियों केन और बेतवा को जोड़ने की योजना को आगे बढ़ाने का लगभग ऐलान भी कर दिया था. साथ ही कहा था कि इस योजना को पूरा होने में जो वक्त लगेगा वो समय सात साल का होगा. यानि योजना के शुरू होने के बाद पूरा होने में कुल सात साल लग जाएंगे.
नदियों को आपस में जोड़ने के बाद जिन फायदों का ज़िक्र सरकार कर रही है उतना ही नुकसान पर्यावरण और वन्यजीवों को उठाना पड़ सकता है. हालांकि इस बात से सरकार अंजान नहीं है. सरकार यह भलीभांति समझती है कि नदियों को आपस में जोड़ने से लंबी चौड़ी जमीन पानी में डूबेगी जिससे पर्यावरण को नुकसान तो होगा साथ ही वन्यजीवों पर भी संकट आएंगे. लेकिन हर बार सरकार यह कहकर बहस को ख़त्म कर देती है कि आधुनिकरण के लिए थोडा-बहुत पर्यावरण का नुकसान झेलना पड़ेगा. लेकिन इस योजना से जो नुकसान होगा वो सरकार की कल्पना से भी भयावह हो सकता है.
दूसरी ओर अगर हम नदियों को जोड़ने में होने वाले खर्चे की बात करें तो शायद यह योजना भविष्य में देने वाले फायदे से महंगा लगने लगेगा. साल 2005 में लगाए गए एक अनुमान के मुताबिक इस योजना की तीस परियोजना पर कम से कम खर्चे का जो हिसाब लगा है, वह पांच लाख 60 हजार करोड़ रुपए है. यानि कि अगर यह अनुमान आज लगाया जाए तो खर्चा हमारे शुरुआती अनुमान से दुगना हो जाता है. जाहिर सी बात है इस राशी को जुटाने में सरकार के पसीने छूट जाएंगे और अगर मंत्रालय बिना तैयारी के इस योजना को हाथ लगाती है तो मंत्रालय पर कर्ज बढ़ेगा. इस योजना के पहले भी सरकार ने जिन लोक लुभावन योजनाओं का ऐलान किया है अभी उनके लिए भी राशी जुटाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है.
अगर नदियों को आपस में ना जोड़कर सरकार शहर और गाँव में छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण करवाए तो हालात कुछ हद्द तक पर्यावरण के लिए अच्छे हो सकते हैं. साथ ही वक़्त और पैसा दोनों की बचत होगी. इन योजनाओं से होने वाले फायदे के बारे में भी कम समय में पता लगाया जा सकेगा. नदियों को आपस में जोड़ने की चर्चा उस वक़्त पहली बार हुई थी. जब हमारे पूर्व राष्ट्रपति ने 2005 में अपने अभिभाषण में इसका जिक्र किया था. लेकिन तब से लेकर अब तक यह योजना कहाँ है? इसपर कितना काम हुआ है? यह चर्चा का विषय है. पिछले दिनों मोदी कैबिनेट में फेरबदल के दौरान जल संसाधन मंत्री को भी बदल दिया गया. अब इस मंत्रालय की कमान पहले से ही कैबिनेट में मंत्री रहे नितिन गडकरी को दी गई है. देखना ये हैं कि आने वाले एक साल में सरकार इन योजना को कितना आगे बढ़ाती है.