खुद से रूबरू होने का तरीका ; विपश्यना
विपश्यना एक यौगिक किर्या है, जिसमे व्यक्ति मौन, सीमित संसाधनों के बीच रह कर अपने जीवन का कुछ समय एकांत में बीताता है. विपश्यना का पद्दति का प्रयोग प्राचीन समय से हो रहा है, परन्तु इसे विपश्यना नाम अभी हाल ही में दिया गया है. अब तो लगभग देश के हर छोटे बड़े शहर में विपश्यना केंद्र खुल गए हैं.
विपश्यना का शाब्दिक अर्थ होता है ‘’जो दिखाई दे रहा है उससे परे देखना ‘’ इन स्थानों पर कोई भी जा सकता है, किसी धर्म जाति वर्ग, सबके लिए एक ही नियम हैं. यहाँ जाने के लिए पहले अपने नाम का पंजीकरण करवा लें जो की एकदम मुफ्त है . जाने के बाद आपको 2 या 3 व्यक्तियों के साथ रखा जाता है, सुबह नाश्ते में हल्का दलिया या खिचड़ी दी जाती है ताकि आसानी से हज़म हो सके और रात का भोजन सूर्यास्त से पहले ही करना होता है, भोजन सात्विक व शाकाहारी होता है, उसके बाद आपको सरल बिस्तर पर सोने की व्यवस्था की जाती है, यहाँ के बस एक ही नियम का पालन किया जाता है कि, आपको किसी से भी बात नही करनी है, किसी भी प्रकार का संगीत नही सुनना है, कुछ भी लिखना या पढना नही है.
यहाँ पर यदि कोई भी मनुष्य कुछ दिन रह लेता है तो उसमे अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिलता है, क्योंकि जब व्यक्ति दुनिया से अलग जीवन जीना शुरू करता है तो उसका स्वंय से साक्षत्कार होता है ,जिन व्यक्तियों को क्रोध अधिक आता है, जो विपरीत परिस्थतियों में स्वंय पर काबू नही कर पाते, जिन्हें छोटी से छोटी बातें भी चुभ जाती हैं, और वे खुद पर नियंत्रण नही रख पाते, उनके लिए विपश्यना एक बहुत अच्छा जरीया है.
सोचने वाली बात है कि, जब ये संस्थाएं हमसे आपसे कुछ नही लेती तो ये चलती कैसे हैं ? बड़े उद्योगपति इनको चंदा देते हैं, उसके अलावा जो दानपात्र वहां रखा है उसमे अपनी स्वेच्छा से आप कुछ भी डाल सकतें हैं. आज के समय में विपश्यना आश्रम में बड़े – बड़े लोग, फिल्म अभिनेता / अभिनेत्री ,राजनेता तथा विदेशी मूल के लोग भी खुद से रूबरू होने के लिए यहाँ आते हैं और स्वयं में बदलाव ले कर जाते हैं. विपश्यना की क्रिया को प्राचीन भारत में समाधि के रूप में जाना जाता रहा है. ओशो का कहना है ‘’अकेले रहना और एकांत में रहना ,इन दोनों बातों में बहुत अंतर है ‘’
एकांत में व्यक्ति स्वयं से बात करता है, विचार करता है, निष्कर्ष पर पहुंचनें का प्रयास करता है और देर सबेर किसी न किसी निष्कर्ष पर पहुँच ही जाता है, किन्तु अकेले रहने पर संताप करता है, राग – द्वेष के बारे में सोचता है व परेशान हो जाता है. आप एकांत में हो तो आपका सौभाग्य है, आपको वक़्त मिला है खुद से बात करने का, इसका सदुपयोग करिए .यकीन करें आप बहुत सकारात्मक महसूस करेंगें, आपको खुद से मिलना बहुत अच्छा लगेगा और बार बार खुद से मिलने की इच्छा रखेंगें .