क्या सरकार ने बालश्रम को कानूनी मान्यता दे दी है ?
बालश्रम की समस्या भारत में ही नही बल्कि समूर्ण विश्व में है , बच्चों का पैसों के लिए काम करना बालश्रम की श्रेणी मे आता है, बच्चों का छोटी आयु में काम करना उनके शारीरिक और मानसिक दोनों के विकास के लिए हानिकारक है. बालश्रम के कारण बच्चें अपनी शिक्षा और बचपन से भी दूर हो जाते हैं .
बालश्रम के अंतर्गत काम करने वाला व्यक्ति निर्धारित आयुसीमा से छोटा होता है .इस प्रथा को कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संघठनों ने शोषित करने वाली माना है .बालश्रम की श्रेणी मे वेश्यावृत्ति ,उत्खनन ,ढ़ाबो पर काम करना ,जहाँ इन्हें ज्यादा से ज्यादा काम और कम से कम परिश्रमिक मिलता है .
यूनिसेफ के अनुसार दुनिया के 2.5 करोड़ बच्चें जिनकी आयु 3 से 16 के बीच है बालश्रम मे लिप्त हैं .
अमेरिका मे बालश्रम कानून ने किसी प्रतिष्ठान मे बिना माता – पिता की सहमति से काम करने की न्यूनतम आयु 16 वर्ष रखी है. चौकाने वाली स्थिति है की 50000 से 70000 हज़ार नेपाली लडकियाँ वेश्यावृत्ति मे लिप्त हैं जिनकी आयु महज़ 12 से 16 के बीच है .
बाल मजदूरी पर संसद द्वारा पारित नया क़ानून बेहद ही निराशजनक है. यूनिसेफ ,बचपन बचाओ आन्दोलन और बाल अधिकारों के लिए समर्पित अन्य संस्थाओं ने इस पारित क़ानून की घोर निंदा की है .न केवल विपक्षी बल्कि सत्तारूढ़ दल के कुछ सांसदों ने भी इस कानून के खिलाफ सवाल उठाएं हैं .इस क़ानून की सबसे बढ़ी कमजोरी ये है की यह क़ानून बाल मजदूरी के निर्कृष्टतम रूप तक को जायज ठहराया है. बाल श्रम निषेध व नियमन संशोधन विधेयक 2016 का मकसद बाल मजदूरी के खिलाफ पहले से चले आ रहे कानून को नरम बनाना है, इस क़ानून के पास होते ही 14 साल तक के बच्चों से पारिवारिक कारोबार और फिल्म व तेलेविसन कार्यकर्मों में बेखटके काम कराया जा सकता है. बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक समझे जाने वाले उधोगों की संख्या ८३ से घटा कर मात्र 3 कर दी गई है .
अभी सिर्फ खदान ,ज्वलनशील पदार्थ और विस्फोटक उद्योग को खतरनाक मन गया है ,जरी चूड़ी के कुटीर उद्योगों में ,कपड़ों की दुकान पर ,और तमाम कारखानोंमे बच्चें काम कर सकतें हैं इसके लिए सरकार ने विचित्र तर्क पेश किया है कि ,’’ बच्चों को शुरू से ही अपने पारिवारिक कामों में शामिल हो कर अपना पुश्तैनी हुनर सीखना चाहिए ,अर्थात सरकार ने अपनी तरफ से ही बच्चों के लिए अपने –अपने खानदानी कामों मे बने रहने की हद बाँध दी वे अपने पारम्परिक दायरों से बाहर निकलें ,शिक्षा प्राप्त करें अपने परिवार और समुदाय के लिए एक नए सपने का सृजन करें ,इस तरह की बातें सरकार की नज़र मे पुरानी पड़ चुकी हैं, भारत मे ज्यादातर बच्चों का शोषण रिश्तेदारी के नाम पर ही होता है. बचपन बचाओ आन्दोलन के संस्थापक और नोबेल पुरस्कार विजेता कैलास सत्यार्थी अक्सर कहते कि उन्होंने कई बाल मजदूरों को ऐसे मालिकों के चुंगल से छुड़ाया है, जो खुद को उन् बच्चों का रिशेदार बता रहे थे .बिल के ये प्रावधान दिसंबर 2013 में पेश श्रम व रोजगार सम्बन्धित संसदीय समिति की सिफारिशों के खिलाफ है .श्रम व रोजगार सम्बन्धी संसदीय समिति ने अपनी 40 वीं रिपोर्ट में कहा था की बच्चों द्वारा स्कूली घंटों के बाद अपने परिवार की मदद करने का प्रावधान बिल से हटाया जाए और जोखिम वाले काम की परिभाषा मे वो सभी काम शामिल किये जाएँ ,जो किशोरों के स्वास्थ्य ,सुरक्षा और नैतिकता को नुकसान पहुँचातें हैं.
सरकार को बालश्रम के कानून पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.