यू.पी.मे विधानसभा चुनाव के लिए सरगर्मियां लगातार बढ़ती जा रही हैं , चुनाव के तारीखों की घोषणा अभी तक नही हुई है लेकिन सभी पार्टियों ने अपनी तरफ से तैयारियां शुरू कर दी हैं . 2014 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव और हाल ही में संपन्न पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों मे करारी शिकस्त के झेलने के बाद यू.पी. विधानसभा चुनाव के लिये काँग्रेस ने भी रणनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर की अगुआई मे चुनाव अभियान की शुरुआत कर दी है . राजनितिक विशेषज्ञों की माने तो इस बार काँग्रेस के लिए संभावनाए पिछले चुनाव से बेहतर है .
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और 75 पार की शीला दीक्षित को काँग्रेस का सी.एम्. बनाकर काँग्रेस ने दांव खेला है . शीला का चेहरा मोटे तौर पर निर्विवाद रहा है शिक्षित महिला होने का फायदा मिलने की उम्मीद भी पार्टी कर रही है , गौरतलब है की शीला का यू.पी. से गहरा संबंध भी रहा है . शीला का विवाह स्वाधीनता सेनानी तथा केन्द्रीय मंत्री मंडल के सदस्य रह चुके उमाशंकर दीक्षित के परिवार मे हुआ था , यही नही उनके पति स्व. विनोद दीक्षित भारतीय प्रसाशनिक सेवा के सदस्य भी रहे .
शीला दीक्षित ने नये प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के साथ मौर्चा भी सम्हाल लिया है और माना जा रहा है की शीला के आने से प्रदेश मे संगठन को को मजबूती मिलने की संभावना है . दिल्ली का सियासी अनुभव और महिला उम्मीदवारी का फायदा भी पार्टी को मिल सकता है , हलाकि देश के सबसे बड़े राज्य मे लगभग निर्जीव पड़े संगठन और कार्यकर्ताओं मे जान फूकना उनके लिए किसी चुनौती से कम नही होगा.
एक तरफ शीला के राजनैतिक कैरियर का सवाल है तो शीला 1998 से 2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं . दिल्ली मे सी.एम्. का पद सँभालने से पहले वे केंद्र सरकार मे भी मंत्री के तौर पर सेवाएँ दे चुकी है . 1984 से 1989 तक वे यू.पी. के कन्नौज से सांसद भी रह चुकी हैं . दिल्ली मे मेट्रो और फ्लाईओवर के लंबे जाल उन्ही के कार्यकाल की देन माना जाता है.
लखनऊ से दिल्ली की दूरी लगभग 500 किलोमीटर है, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी मे दिल्ली के राजनितिक घटना क्रम का असर रोज और लगातार पड़ता रहता है . माना ये भी जा रहा है कि दिल्ली मे मुख्यमंत्री बने रहने का प्रभाव उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों मे पड़ सकता है . शीला का विकास मॉडल यू.पी. के मतदाताओं को अपनी तरफ खींच सकता है .
बहरहाल जहाँ तक जातीय समीकरणों की बात है तो कांग्रेस यू.पी. मे ब्राह्मण , राजपूत , और मुस्लिम मतदाताओं को साथ लाने की कोशिश करेगी . ब्राह्मणों को अब तक परम्परागतरूप से भाजपा का वोट बैंक माना जाता है . प्रशांत किशोर की अगुआई मे कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव मे जातीय समीकरणों को भी साधने की तैयारी मे है.
राजबब्बर के मुस्लिम परिवार मे विवाहित होने का लाभ भी लिया जा सकता है . जाहिर है यू.पी. मे इस बार अल्पसंख्यक और दलित मतदाताओं का रुझान मायावती की बहुजन समाज पार्टी की तरफ है , हालिया चुनावी नतीजों को देखने से साफ़ है कि मतदाता किसी भी त्रिशंकू विधानसभा के बजाय पूर्ण बहुमत वाली सरकार के लिए कोशिश करेंगे .
पी.के. का एक प्रस्ताव है कि प्रदेश को 8 जोन मे बांटा जाए और हर जोन मे 10 लोक सभा सीटों को रखा जाए , फिर उस जोन मे जाति धर्म की जनसंख्या के लिहाज़ से अपने चहेतों को जनता के बीच ले जाया जाए . हर जोन मे पार्टी की रैली के साथ गाँधी परिवार के नेताओं की भी रैली वहां आयोजित की जाए . कुछ दिन पहले तक जीत के लिए रणनीति तलाश करते कांग्रेस कार्यकर्ताओं मे नई ऊर्जा का संचार हुआ है . कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि अबकी बार उनके पास ऐसी टीम व समीकरण है जिससे प्रदेश मे उनकी सरकार बन सकती है या भागीदार बन सकती है .
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