कला का सफर
वैसे तो कला का हर माध्यम यकीन दिलाने की कला ही है, फिर चाहे वह संगीत, डांस, चित्रकला, सिनेमा या नाटक ही क्यों न हो, विश्वास दिलाने की कला को नाटक ही कहा जाता है. इस भौतिक विश्व की बात करें तो जितनी भी वस्तु है वह प्रतिबिंब मात्र है और यहां हर कलाकार का दुनिया को देखने समझने का अपना ही नजरिया है. यह फर्क कहे या कलाकार का नजरिया ही है जो असलियत और उसके दृष्टिकोण को दिखाता है. मूलत: यही अंतर होता है जो वास्तविक दुनिया और कलाकार की दुनिया में होता है.
आजकल की दिन दुगनी रात चौगनी बढ़ती नई तकनीक ने देश के दूर दराज वाले इलाकों में रह रहे लोगों को दुनिया से जोड़ दिया, जिसका फायदा यह हुआ कि किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति की बात विश्वभर में पँहुचने लगी है. पहले कैमरे में रिल डला करती थी फिर फोटो लिए जाते थे, आज कैमरे में नई तकनीक आने के बाद में सभी तरह के फोटो उपलब्ध हैं और जिनका उपयोग हर कुशल निर्माता द्वारा किया जाता है. इसे ही सृजनात्मकता कहा जाता है. वहीं आज के परिपेक्ष की बात करें तो आपकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप कितने कौशल और चतुराई से संसाधनों का उपयोग करते हैं.
आप जब कोई नाटक या फिल्म देखते हैं, पेंटिंग पर नजर डालते हैं या कविता पढ़ते हैं तो यकीन दिलाया जाता है कि हम जो कुछ भी देख या पढ़ रहे हैं, वह हमारी जिंदगी जैसा ही रचित है या कहते है कि आम जिंदगी की कहानी जैसा है. कलाकार जितनी अच्छी तरह से यह विकल्प पेश करता है, उतना ही कामयाब होता है. जब हम किसी भी विधा की अभिव्यक्ति देखते हैं तो हम उसे खुद की जिंदगी से जोड़ने की कोशिश करते है और हमें लगता है कि इसमें दृश्य, घटनाएं और चरित्र हमारे ही जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हैं. वह पात्र हमें अपने आसपास ही चलते-फिरते नजर आने लगते हैं, यही कला और जीवन का करीबी रिश्ता है. यकीन दिलाने की कला का कौशल यही है कि आर्टिस्ट कला को जीवन से इस खूबी से जोड़े कि दोनों में कोई फर्क नहीं बचे. कविता सुनते या पढ़ते वक्त और संगीत-नृत्य को सुनते-देखते हुए भी यही अनुभूति होती है, जैसे संगीत के बोल में हमारे मन की बात कह दी गई हो. विश्वास दिलाने का यही हुनर कला को जीवंत बनाता है.
अगर अच्छी गजल या कविताओं को पढ़ते या सुनते समय ऐसी अनूभूति होती है मानों कवि वो बात कह रहा है जो में कहना चाहता रहा हूँ. वही हाल मूर्तिकार का भी होता है जो असलियत का यकीन दिलाने लायक मूर्ति गढ़ने की कोशिश में और अन्य कलाकार भी इसी तरह यकीन दिलाने लायक कृति के निर्माण में जिंदगी गुजार देते हैं. दरअसल, जिंदगी या कहे जीवन ही हर कला का स्रोत होता है.
जीवन से ही कला की उत्पत्ति हुई और धीरे-धीरे समय के साथ सभी कलाएं बेहतर होती गर्इं. हर युग में कलाओं में परिवर्तन हुए, फिर चाहे वह मूर्ति कला हो, चित्रकारी, नृत्य,गायन या कविता क्यों न हो, इनमें प्रयोग भी हुए और समय की दौरान होने वाले घटना क्रम का प्रभाव भी पड़ा. लेकिन कलाओं का मूल जुड़ाव जिंदगी से बना रहा, अगर कला जीवन से कट जाती तो अलग-थलग पड़ जाती, जिसके चलते कला अप्रासंगिक हो जाती.
प्रचार-प्रसार के इस दौर में कलाओं के कुछ रूप सुर्खियों में आए. इंटरनेट के जमाने में वे ही कलाकार चर्चित हुए जो इंटरनेट में पहुंचे या पहुंचाए गए. जो इसके बाहर रहे, वे उतने चर्चित नहीं हुए. यह भी एक विचित्र बात है कि सोशल मीडिया जिसे चाहे, रातों-रात आसमान पर पहुँचा दे. शुरुआती दौर में सोशल मीडिया का शोर और असर राजनीति और सम-सामयिक सरोकारों तक सीमित था. अब वह कलाओं को भी प्रभावित कर रहा है. कला भी आसपास के परिवर्तनों से अप्रभावित कैसे रह सकती है?
हर कलाकार अपने हुनर को लगातार अभ्यास और रचनाधर्मिता के सहारे चमकाने की कोशिश करता है. इसीलिए बेजान बांसुरी, शहनाई, तबला और ढोलक स्तरीय कलाकार के हाथों से जीवंत होकर बोलने लगती हैं. यही चित्रकला, नृत्य, कविता या शायरी में भी होता है. कला का वादों की वाद्या में और इस या उस विधा का एक खास दायरे में सिमट जाना उसे संकीर्ण तो करता ही है, अनावश्यक विवाद और खेमेबंदी को भी प्रोत्साहित करता है.
दरअसल, हर विधा अपने-अपने तरीके से विकल्प पेश करने या यकीन दिलाने की कला ही है. कौन-सी कला कितनी कामयाब हो पाती है, यह कलाकार की क्षमता और उसे मिलने वाले अवसर और प्रोत्साहन दर पर निर्भर करता है. अभिव्यक्ति की सफाई और अनुभूति की तीव्रता कला की सफलता का मूल मंत्र है. कलाकार कितनी अच्छी तरह हमें यकीन दिलाता है, यह महत्त्वपूर्ण है. सच यह है कि अगर अनुभव कला-जीवन का विश्वसनीय विकल्प है तो उस विकल्प पर यकीन दिलाने का हुनर भी एक कला ही है.