आखिर क्यों करते है हम श्राद्ध ?
Posted On November 21, 2024
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8 हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बहुत ही जरूरी माना जाता है . मान्यता के अनुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण न किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नही मिलती , और वह एक अतृप्त आत्मा के रूप में इस संसार में ही रह जाता है .
पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्र पद्र शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृ पक्ष श्राद्ध होतें हैं , मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आज़ाद कर देतें हैं , ताकि वे अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें . ब्रह्मपुराण के अनुसार जो कुछ भी उचित काल , स्थान , समय ,पितरों के नाम , उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धा पूर्वक दिया जाए श्राद्ध कहलाता है. पिंड रूप में दिया गया पितरों को भोजन श्राद्ध का अहम् हिस्सा होता है .
यह भी माना जाता है कि, जब पितर नाराज़ हो जातें हैं तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है , पितरों की अशांति के कारण धनहानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है . संतानहीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखतें हैं ,ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए .
श्राद्ध में तिल , चावल , और जौ का अधिक महत्त्व होता है . श्राद्ध का अधिकार पुत्र ,भाई , पौत्र ,प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है .
कौओं को पितरों का रूप माना जाता है , मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौओं का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं . अगर उन्हें श्राद्ध नही मिलता है तो वे रुष्ट हो जातें हैं , इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है .
श्राद्ध का वास्तविक मतलब दिवगंत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धा पूर्वक याद किया जाना होता है .यदि किसी परिजन की मृत्यु पंचमी के दिन हुई है तो, उसका श्राद्ध पितृ पक्ष की पंचमी के दिन किया जाता है, लेकिन कुछ लोग संस्कार वाली तिथि को श्राद्ध की तिथि मानते हैं .