अघोरी साधुओं की रहस्यमय दुनिया ….
Posted On August 20, 2016
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अघोरपंथ हिन्दू धर्म का एक प्राचीन संप्रदाय है, जो सदियों से काफी विचित्र और रहस्यमय माना जाता रहा है . अघोरी साधुओं के लिए आम आदमी के मन मे आदर के साथ साथ एक भय भी होता है . अघोरियों को आमतौर पर शिव साधक माना जाता है लेकिन इनकी साधना पद्दति बड़ी रहस्यमयी और अजीब होती है . अघोरियों के जीने का अपना अलग ही अंदाज होता है . अघोरी खाने पीने की किसी चीज से परहेज़ नही करते . रोटी चावल खीर पूरी हलवा सब्जी दाल मिले तो ठीक है ना मिले तो भी ठीक है . ये भूख लगने पर सूअर , शव , कच्चा पक्का कुछ भी खा लेते हैं .
अघोरियों के बारे मे ये भी माना जाता है कि,ये मानव मल , मूत्र , मुर्दे का मांस सडे गले पशुओं का मांस भी बिना किसी घृणा या वितृष्णा के खा लेते हैं . हलाकि इस बात मे कितनी सच्चाई है ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन यह भी सच है कि अघोरी कुछ भी हो गाय के मांस का भक्षण नही करते . अघोरी को श्मसान वासी भी कहा जाता है क्योंकि ये ज्यादातर श्मसान में ही निवास करते हैं उनकी साधना भी श्मसान में ही होती है साधारण मनुष्य श्मसान से दूर रहते हैं इसलिए अघोरी श्मसान को सुरक्षित व साधना की दृष्टि से उत्तम समझाते हैं क्योंकि आम व्यक्ति श्मसान से दूरी बना कर रखता है और इनकी साधना मे किसी प्रकार की अड़चन नही पड़ती .
अघोरपंथ की तीन शाखाएं अर्थात तीन तरह के अघोरी मिलते हैं औघड़ , सरभंगी , धुरे . इन तीनों के प्रवर्तक भिन्न भिन्न व्यक्ति हैं लेकिन यह सभी शिव साधक ही है . इनमे से कुछ अघोरी शिव व शक्ति दोनों की उपासना करते हैं , यही कारण है कि ये देश के प्राचीन शिव और शक्ति पूजा स्थलों जो वाराणसी , उज्जैन ,हरिद्वार , ऋषिकेश , गुप्त्काशी ,कालीघाट [ कोलकाता ] आदि जगहों पर दिखाई देते है .कुछ अघोरी पकिस्तान स्थित हिंगलाज माता के मंदिर के पास भी पाए जाते हैं .
दीपावली की रात अमावस्या की रात होती है . इनकी साधना के हिसाब से अमावस्या की रात इनके लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है , उस रात इनका तंत्र मंत्र अपनी चरम अवस्था मे होता है उस रात हर श्मसान मे इनकी उपस्थिति देखने को मिल जायेगी . काशी अर्थात वाराणसी इनकी पूजा का मुख्य स्थल होता है क्योंकि वहां दाहसंस्कार के लिए बहुत बड़ी संख्या में लोग दूर दूर से आते हैं . शव साधना ही इनकी मुख्य पूजा होती है .